आया आषाढ़
सकते में ग्रीष्म,
आया आषाढ़,
घनघोर श्याम
छाया आकाश।
रिमझिम फुहार,
बुझती कुछ प्यास,
सोंधी महक
मिट्टी की आज।
चल दिए किसान
लिए खेती की चाह,
न सूखे का डर,
न कोई परवाह।
घर से चली
बच्चों की फौज,
निष्कपट प्रेम,
करते वे मौज।
चहकी युवतियांँ
अल्हड़ मिजाज,
रिमझिम फुहार,
आया आषाढ़।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)