आम हो गई है जलन
आम हो गई है जलन
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आम हो गई है जलन
देख सीने लगे अगन
हैं सभी खुद में मग्न
मना रहे हैं सभी जश्न
रहने लगे हैं तन्हा से
मन लगे नहीं जहाँ में
अकेले हुए वैरागी से
वैराग्य में लगाई लग्न
ईर्ष्या में हैं ईर्ष्यालु हुए
बातों में झगड़ालु हुए
मतभेद हैं,मनभेद हुए
खो गए कहीं सब रत्न
घर में सभी सियाने हैं
निजता के दीवाने है
स्वतंत्रता के परवाने हैं
हाल बदहाल है जगन
झूठ का बोलबाला है
सच्चे का मुंहकाला है
कोई नहीं रखवाला है
सुखविंद्र करलो यत्न
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)