आम ही आम है !
आम ही आम है !
वागड. की धरा पर
वो मोर की महक
संग तोतों की चहक
पोपले से गदराए
लालिमा युक्त गात
लाल- हरे रंगीन पात
शिशु के मुंह में उग आए
कोमल नन्हें-नन्हें दांत
ज्यों मुस्करा उठते हैं !
साल दर साल
बेनज़ीर और बेमिसाल
और तो और
सुनी सुनाई हर बात
आमों के बारें में कि
दादा बोए पोता खाए !
इसी तरह जंगल में
दरख्त आमों के उग आए !
आज बात झूठी लगती है !
जो मारवाड़ मेंं बच्चों को
बचपन से सिखाती है !
बहुत कठिन काम है !
आम का आम होना
मिट्टी में दुबक कर पनपना
वाकई आम बहुत खास है !
यूं फलों का राजा आम है !
जो कुछ सालों का अंजाम है !
मारवाड़ के नीम सरीखा
वागड़ में आम ही आम है !
© हरीश सुवासिया
आर. ई. एस.
देवली कलां (पाली)