आम पर विचार-2 (मुक्तक)
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ढेला फेंक कर आम तोड़े हम,
एगो छौड़ा ले गया हमें हुआ बहुत गम।
बताइए कैसा कलयुग आ गया है,
एक ठो तो छोड़ देता कम से कम।।
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स्वरचित एवं मौलिक
मैं
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ढेला फेंक कर आम तोड़े हम,
एगो छौड़ा ले गया हमें हुआ बहुत गम।
बताइए कैसा कलयुग आ गया है,
एक ठो तो छोड़ देता कम से कम।।
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स्वरचित एवं मौलिक
मैं