“आम जीवन की संचालित क्रति”
मौलिक संसारिक की अल्पज्ञता,
कोई चमत्कार-द्रढ़ पौराणिक करता है।
सोंच की लाभ-हानि जिसकी जैसै होती,
कारण औचित्य बिन वैसे जीवन रहता है।
टूटे फाटे घर परिवार मिट्टी जंगल जैसे,
उनकी आव्रत्तियों में रहकर जीवन काटे।
घर व महल अट्टालिका जैसे बंगले,
उनमें रहकर लोग बड़े जैसे बने।
अंतर संस्कृति की विधा में जन्मकर,
तन मन की संस्कृति उसै प्यार करती।
जल वायु मिट्टी विधा सूर्य को पाकर,
मौलिक विधा पाकर वो राज्य करते।
ब्यापक संस्कृति है मौलिक विधा की,
जीवन संस्कृति का वही अधिष्ठाता।
दिन रात बनाकर चान्द सूर्य करके,
भीषण प्रकाश और अंधकार दिलाता
विधा संतुलन हेतु जाडा़ गर्मी बरसात कर
अहम वहम सामान्य से बने हैं।
वैचारिक संस्कृति जिसकी होती जैसी,
मानव विधा उस रुप में दिखती है।
अहम वहम ब्यापक संसारिक,
कारण आधार बिन सभी इसमें रहते।
संसारिक प्रगति हेतु काल्पनिकविचारोंको
ब्यापक विधा से हम यथार्थ ओर ले जाते
किसी कार्य को पूर्ण रुप से करने में,
संसारिक अंतर शक्ति को विधा से लगाते।
कार्य की सफलताबादखुदको विशिष्टबना
असफल विधा में हम खुद पर पत्थररखते
असफल बिना निराश हुए,
आत्मविश्वास को विधिवत बढाते रहे।
छोटी-छोटी विधा को संतुलित करके,
उर्जा और शक्ति को वह वहां पहुचाते।
भाव विशिष्टता को अति प्रबल करके
समय परिस्थिति को संयोजित करते।
ओ तुम मेरी आत्म धारणां खूब सजो,
संवरकर ब्रह्म विधा में पहुंच जाओ