आम के आम, गुठलियों के दाम
आम के आम, गुठलियों के दाम l
सही व्यापारी, सही सही काम ll
अबकी, खून चूसती दुनिया में l
आत्मा भी ना पा सके, आराम ll
धर्म ओ प्रभु भी, बेच देते है l
जो मिल जाये, धन, हुश्न ओ जाम ll
ये सुनो, धर्म का परम पैगाम l
मानवता ही, धर्म का हो नाम ll
जब मुसीबत करती, काम तमाम l
भजो भजो श्याम श्याम राम राम ll
बाहर, भीतर, संग्राम संग्राम l
सहज द्वेषी प्यास का, कोहराम ll
अरविंद व्यास “प्यास”