आम का पेड़
मेरे घर के आंगन में लगे
आम के पेड़ ने मुझसे कहा
देखो, फाल्गुन के मस्त महीने में
मुझ पर बोर लगने लगे हैं।
मतवाली कोयल कूकने लगी है
पंछी अपना आशियाना ढूंढने लगे हैं।
देखो फाल्गुन के मस्त महीने में
मुझ पर बोर लगने लगे हैं।
सौंधी-सौंधी सी महक उठने लगी है
सुरभित पवन चलने लगी है।
गदराने लगा है मेरा मन मयूर
बाहें भी मेरी चतुर्दिक लहराने लगी हैं।
नई कोंपलें, नव पल्लव फूटने लगे हैं
गेंदा, गुलाब और तुलसी भी मुस्काने लगे हैं
देखो फाल्गुन के मस्त महीने में
मुझ पर बोर लगने लगे हैं।
मधुमक्खियां रस चूसने को हैं आतुर
तितलियां भी देख कर हैं व्याकुल।
मैं सबको अपना दो रंगी आश्रय दूंगा
बदले में किसी से कुछ न लूंगा।
रखना तुम बस इतना सा ख्याल
काटे न कोई मेरी एक भी डाल।
मानव कहर बरपाने लगे हैं
पेड़ों पर आरी चलाने लगे हैं।
देखो फाल्गुन के मस्त महीने में
मुझ पर बोर लगने लगे हैं।