आम आदमी
आम आदमी
एक गधा है,
उसका मुंह बनंधा है।
नियति का चाबुक,
उसपे साधा है।
कदम कदम पर-
लहू लुहान परकटे,
पंछी की तरह-
भरने को उड़ान,
तड़फ रहा है-
आम आदमी।
अपना शरीर,
पराई सी जिंदगी-
बर्बरता जानवरों सी,
अपनी शर्मिंदगी-
अपने कांधों पर,
अकेला धो रहा है-
आम आदमी।
खून के घूँटपी-
स्थितियों से लड़ता,
गलघोटू घुटन में-
हताश को जी रहा है,
दुख की शराब-
विवश हो पी रहा है
आम आदमी।।