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15 Apr 2018 · 1 min read

आम आदमी

आम आदमी
चूसा जाता है
आम की तरह

नये क़ानून के नाम पर
नयी व्यवस्था के नाम पर
रोज़ मंहगाई के नाम पर

उधड़ जाती है खाल इसकी
छिलके की तरह
दिन रात ज़रूरतें बटोरते

निचुड़ जाता है इसका
खून पसीना सब
गूदा रस जैसे
परिवार पेट पालने में

फ़िर फेंक दिया जाता है
समझकर बेकार
हर बार
गुठली की तरह
समाज के ढेर पर

परन्तु इसकी बेशर्मी तो देखो
ये पुनः उग आता है
बिन खाद पानी दिये
भगवान की कृपा से
नयी फसल लेकर
नया नसीब लेकर

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 628 Views

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