आम आदमी
बस इंसान हूँ मैं।
मैं जैन, सिख,ईसाई
हिन्दू और मुसलमान हूँ मैं।
वैसे मैं और कुछ भी नहीं
बस सिर्फ इंसान हूँ मैं।
बाईबल भी मैंने लिखा,
लिखा भी कुरान है।
मेरी रामायण,गीता में,
सब में एक ही भगवान है।
इन सब से ऊपर उठकर कैसे कहूँ?
कि भगवान हूँ मैं।
वैसे मैं और कुछ भी नहीं
बस सिर्फ इंसान हूँ मैं……….
मुझे लड़ना नहीं आता,
मुझे झगड़ना नहीं आता।
है सभी मेरे ही अपने,
चाहूँ इंसानियत का नाता।
मुझे खून नहीं बहाना अपनों का
सब की ही जान हूँ मैं।
वैसे मैं और कुछ भी नहीं
बस सिर्फ इंसान हूँ मैं………..
मस्जिद में लाशें बिखरी हुई है,
राम मंदिर में झगड़ा है।
मजहब तो पाँव पर खड़ा है
मगर अभी तक लंगड़ा है।
मैं ही दावानल बन जाता
सागर में शांत तूफान हूँ मैं।
वैसे मैं और कुछ भी नहीं
बस सिर्फ इंसान हूँ मैं……….
“ मुसाफिर ” तेरी दुनिया अजीब,
कविता में तेरी रोना है।
महफिल में बहरे है सारे,
असीम व्यथा तेरी खिलौना है।
आना जाना है यहाँ पर
अंतिम पड़ाव पर श्मशान हूँ मैं।
वैसे मैं और कुछ भी नहीं
बस सिर्फ इंसान हूँ मैं……..।।
रोहताश वर्मा “ मुसाफिर ”