आम आदमी अन्ना जी, ठगे ठगे रह गए
आए थे भ़ष्टाचार मिटाने, भ़ष्टाचार में खो गए
कुर्सी पर बैठते ही, आप भी भ़ष्ट हो गए
भूल गए आदर्श सभी, आचार विचार खो गए
लोकपाल लुप्त हुआ, मूल्य सभी ढह गए
सकते में अन्ना जी,जो कहना था कह गए
आम आदमी अन्ना जी, ठगे ठगे रह गए