आभासी दुनिया और युवा पीढ़ी
आभासी दुनिया और युवा पीढ़ी
_______________________
– डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”
प्रसिद्ध अद्वैतवादी दार्शनिक शंकराचार्य ने अपने मायावाद की स्थापना में माया की दो शक्तियों का उल्लेख किया था – आवरण और विक्षेप । इसमेंं माया की आवरण शक्ति ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप पर आवरण डालने का काम करती है, जबकि विक्षेप शक्ति जगत को ब्रह्म पर विक्षेपित कर देती है , जो कि मिथ्या है ।
कुछ इसी तरह का आवरण और विक्षेप आज की आधुनिक युवा पीढ़ी पर हावी हो रहा है । यह कहें कि आज के युवा पूरी तरह मायावी दुनिया में फंस चुके हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । क्योंकि वर्तमान में सोशल मीडिया भी एक प्रकार का आभासी और मिथ्या जगत ही है , जो युवाओं के ब्रह्म-तत्व (यथार्थ ज्ञान) पर पूर्णत: अनावरित हो चुका है । इस आवरण के कारण सोशल मीडिया का मायावी संसार ही उनके लिए यथार्थ, असंदिग्ध और सत्य है । आभासी संसार के जाल में पूर्ण रूप से फंसकर संस्कार , सद्गुण और राष्ट्रभक्ति जैसे मूल्यों का कोई औचित्य नहीं रह गया है और ये इसी आभासी दुनिया के नीचे गहराई में दफन हो चुके हैं ।
विवाहित युवाओं में हालात यहां तक पहुंच चुके हैं की पति का अपना आभासी संसार तो पत्नी का अपना आभासी संसार निर्मित हो चुका है । मजे की बात यह है कि इसी संसार में वह सुख का अनुभव करने लगे हैं । आज की नौजवान माताएं ऐसे अभिमन्यु को जन्म देती हैं जो कि बिना मोबाइल के रह ही नहीं सकते । ऐसे प्रत्यक्ष और परोक्ष उदाहरण नित्य देखने को मिलते हैं । गाड़ी चलाते समय , सड़क पार करते समय , यहां तक कि तीये की बैठक में भी बिना मोबाइल के युवा रह नहीं पाते । चलते वाहन में आभासी दुनिया से रूबरू होते हुए बहुत से नौजवानों को प्रत्यक्ष देखा है कि वे किस कदर इस मायावी संसार में विचरण करने लगे हैं ।
सोशल मीडिया के आधारभूत तत्वों जैसे फेसबुक , टि्वटर , व्हाट्सएप , इंस्टाग्राम , यूट्यूब , टिकटॉक इत्यादि के प्रयोग के कारण हमारी गरिमामयी सांस्कृतिक विरासत खतरे में पड़ गई है तथा जीवन अनुशासन विहीन हो चुका है और मानवीय मूल्यों का अंशत: बलिदान हो चुका है । युवाओं में सतत् बढ़ते मानसिक तनाव के कारण अनेक कुंठाएं जन्म लेती जा रही हैं , जिसके परिणामस्वरूप हत्या , डकैती , लूट, बलात्कार ,अपहरण , ठगी और आत्महत्या जैसे अपराधों का ग्राफ निरंतर ऊंचाई की ओर जा रहा है । मनुष्य मानसिक , भावनात्मक और शारीरिक रूप से अक्षम होता जा रहा है । सहनशक्ति और धैर्य जैसे मानवीय गुण तो लुप्त ही होते जा रहे हैं और निरंतर विविध प्रकार के रोगों से मानवता जर्जर होती जा रही है । युवाओं में पोर्न फिल्म देखने की होड़ लगी हुई है , जिसके कारण नैतिक और चारित्रिक पतन तो होता ही है , साथ ही सामाजिक व्यवस्था भी चौपट हो रही है , जिसके चलते मासूम बच्चे तक सुरक्षित नहीं है । आज अमर्यादित आचरण के कारण मनुष्य जानवर से बदतर हिंसक हो चुका है जिसका एकमात्र कारण यह आभासी दुनिया ही है । माता-पिता , परिवार ,समाज और राष्ट्र को इस आभासी दुनिया से भीषण हानि हो रही है । इसने राष्ट्र के सामाजिक-सांस्कृतिक , आर्थिक , भौगोलिक और ऐतिहासिक सभी पहलुओं को बदल कर रख दिया है । गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है , जिससे भविष्य के लिए गुणवान नागरिकों का निर्माण होना असंभव लग रहा है । आने वाली पीढ़ियां अपनी भावी पीढ़ियों को क्या देंगे ? यह एक सोचनीय प्रश्न उभर कर सामने आ रहा है । आभासी दुनिया ही है जो युवाओं को प्रकृति से भी दूर ले जा रही है । वर्तमान में युवाओं के वास्तविक ध्येय में ना प्रकृति का सानिध्य है , ना ही व्यवस्थित दिनचर्या । ना ही योग का सानिध्य है , ना ही स्वास्थ्य की चिंता । युवाओं के लिए बस एक ही सर्वोपरि सत्ता है और वो है – आभासी दुनिया ।