आभरण
2-1-दिल्ली बहुत दूर है- मुहावरे पर आधारित – कहानी –
आभरण-
हासिम को प्रधानी के चुनांव से जीने का रास्ता मिल गया उसने दस बीस ऐसे नवजवानों कि एक टीम बनाई जो उसकी ही सोहबत के अपने परिवार समाज के लिए सरदर्द थे उस टीम के साथ प्रतिदिन गढ़वा पहुंचता हाशिम और पीने खाने का जुगाड़ बनाता रात आठ बजे तक उसकी टीम घर वापस गांव लौट आपने अपने घरों को जाती प्रधान जी को लगा कि हाशिम अब जीवन मे सिवा मौज मस्ती के कुछ भी कर सकने में सक्षम नही हो सकता उनका भ्रम बहुत जल्दी ही टूटने लगा।
हासिम पर राजनीतिक दलों की नजर पड़ी उन्हें हासिम अपने मकशद का नौजवान लगा लगभग सभी दलों के जवार के छोट भैया नेता हाशिम से सम्पर्क करता जब उसकी पार्टी के बड़े नेता आते और भीड़ जुटानी होती छोट भइया नेता लोग हाशिम को भीड़ जुटाने के लिए दो सौ रुपये प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाब से पैसा देते और दोपहिया वाहन में पेट्रोल भराने का पैसा एव मीट मुर्गा शराब कबाब जो अच्छा लगे हाशिम को अपने अय्याशियों के लिए इससे मुफीद रास्ता और क्या मिल सकता था?
महिने भर वह रैलियों प्रदर्शन आदि में अपनी टीम के साथ व्यस्त रहने लगा हाशिम के गांव में अब गांव वाले कहते हाशिम मियां कलक्टर ,डॉक्टर, इंजीनियर नही बन सके बाकिर नेता जरूर बनिहे बड़े बड़े डॉक्टर इंजीनियर कलेक्टर इनके सामने पानी भरते नज़र आएंगे मगर –
#दिल्ली अभी बहुत दूर है#
हाशिम मियां को अभी बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे हाशिम इन सब बातों से बेखबर अपने रास्ते पर चलता जा रहा था ना उसके पास कोई मकशद था ना ही मंज़िल वह अनजानी राहों पर अंधेरे में दौड़ता जा रहा था ।
जब यह बात पुराने प्रधान कि जानकारी में आई कि हाशिम इलाके के सभी पार्टियों के नेताओ के सम्पर्क में है और सबसे उसके अच्छे संबंध है उन्हें अपनी प्रधानी खतरे में नजर आने लगी उन्होंने हाशिम को भटकाने का रास्ता खोजना शुरू कर दिया ।
प्राधन ने इलाके के मशहूर दबंग कहे या अपराधी जंगल सिंह से बात किया और हाशिम को अपने लिए इस्तेमाल करने का सुझाव दिया जंगल सिंह को भी ऐसे बेखौफ बेफिक्र नौजवानों की जरूरत होती उसने बिना देर हाशिम को अपने साथ लाने कि जुगात भिड़ाई ।
हाशिम को ना तो कोई भय था ना ही कोई चिंता वह जंगल सिंह के साथ उनके कार्यो में काफिले में अपने काफिले के साथ शामिल हो गया ।
जंगल सिंह ने हाशिम एव उसके साथियों को कई तरह से अपने माप पैमाने पर जांचा परखा उंसे भरोसा हो गया कि हाशिम एंड कम्पनी सिर्फ अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए कुछ भी कर सकती है और विश्वसनीयता पर संदेह नही है ।
जंगल ने हासिम पर भरोसा भी किया और उसकी एव उसके टीम की जरूरतों को पूरा भी करते लेकिन हाशिम ने राजनीतिक दलों के जुलुशो में पैसे लेकर शरीक होना नही छोड़ा पुराने प्रधान को इत्मिनान हो गया कि हाशिम अब कभी भी उनके राह कि रुकावट नही बन सकता ।
गांव एव गांव के आस पास के लोग जब हाशिम एव उसके साथियों को देखते ताना मारते ये लोग देश कि सरकार बनाएंगे लेकिन क्या करे बेचारे-
# दिल्ली अभी बहुत दूर है#
कही ऐसा ना हो कि बेचारे दिल्ली पहुंचते पहुंचते दम तोड़ दे हाशिम एव उसके साथियों पर कोई असर नही पड़ता वह जिधर मुड़ जाते चलते जाते फिलहाल जंगल सिंह के साथ लगें हुये थे।
जंगल सिंह का बहुत बड़ा व्यवसाय था हत्या ,लूट ,डकैती हप्ता वसूली ठिका आदि आदि हाशिम और उसकी टीम को जंगल सिंह ने अपने ठीके का काम सौंपा था जिसे बाखूबी निभा रहे थे इधर गांव के प्रधान निश्चित थे कि हाशिम का जल्दी ही किसी अंजाम पहुँच जाएगा ।
इसी बीच जंगल सिंह ने एक दिन हाशिम एव उसके साथियों को बुलाया और बोला एक सप्ताह बाद लोक निर्माण मंत्री जी एव बड़े बड़े बड़े हाकिम आने वाले है और सभी कि जिम्मेदारी निर्धारित कर बांट दिया और हिदायत दिया कि किसी मेहमान को कोई परेशानी ना हो।
हाशिम कि पूरी टीम एव जंगल की पुरानी टीम समन्वय के साथ मंत्री जी के कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु जी जान से जुटी हुई थी कार्यक्रम से एक दिन पूर्व शाम को मंत्री जी एव आला हाकिम जनपद मुख्यालय के सर्किट हाउस एव विशिष्ट अतिथि ग्रहों में आकर जम गए शाम की दावत बहुत जोरदार हुई जिसका आयोजन जंगल सिंह ने किया था लेकिन यह बात सिर्फ कुछ ही विशेष लोगो को मालूम थी आम जन यही जानता था कि सारी व्यवस्था सरकारी है दावत समाप्त होने के बाद सब अपने अपने अतिथि गृह में चले गए ।
मंत्री जी एव मुख्य अभियंता लोक निर्माण सपत्नीक मंत्री जी से मिलने करीब राती दस बजे आये और मंत्री जी के सूट का दरवाजा खटखटाया मंत्री जी ने दरवाजा खोला तब मुख्य अभियंता महोदय बोले सर खाना खाने के बाद हम लोग टहल रहे थे सोचा कुछ देर अपकी कम्पनी मिल जाय मंत्री जी ने कहा क्यो नही और दोनों मंत्री जी के साथ उनके सूट में दखिल हुये कुछ देर बाद मुख्य अभियंता अकेले ही मंत्री जी के सूट से बाहर निकले और अपने अतिथि गृह चले गए।
हाशिम कुछ दूरी से सारा नजारा देख रहा था उंसे समझ नही आ रहा था कि मुख्य अभियंता आये तो सपत्निक थे गए अकेले इतनी रात को कोई अपनी बी बी दूसरे के हवाले तो कर नही सकता है आखिर माजरा क्या है?
हासिम बहुत परेशान बहुत देर तक इधर उधर टहलता रहा लगभग बारह साढ़े बारह बजे उसके सब्र ने जबाब दे दिया और उसने मंत्री जी का दरवाजा खटखटा ही दिया मंत्री जी ने कुछ देर तो दरवाजा खटखटाने कि आवाज को अनसुना किया जब अति हो गयी तो दरवाजा खुला और खोला उसी महिला ने जो मुख्य अभियंता के साथ आई थी और बड़े गुस्से से तमतमाते हुये बोली क्या बात है हाशिम ने बड़े अदब से कहा मैडम आपकी कीमती अंगूठी बाहर गिर गयी उंसे ही देना था ।
महिला का पारा कुछ नरम हुआ बोली लाओ दो मेरी अंगूठी
हासिम ने अंगूठी दे दी तभी उसकी निगाह मंत्री जी के ऊपर पड़ी जिसे देख दंग रह गया और उसने अनुमान लगा लिया कि सामने खड़ी महिला मुख्य अभियंता कि पत्नी नही है यह मंत्री जी कि खुशामत में पेश की गई है ।
मगर हासिम को डर था जंगल सिंह का की कही उंसे कुछ भी पता चला तो वह जान खा जाएगा हाशिम चुप चाप वहाँ से ऐसे चला गया जैसे उसे कुछ मालूम ही नही सुबह लगभग पांच बजे मंत्री जी स्वंय मार्निंग वाक के लिए निकले और सीधे हाशिम के पास गए और बोले मिया हाशिम तुममें तो बड़े राजनीतिज्ञ के गुण है क्योंकि तुम विश्वसनीय हो एव जिम्मेदार होने के साथ साथ होशियार भी हाशिम को लगा जैसे मंत्री उंसे बेवकूफ बना रहा है ताकि मैं इसकी पोल ना खोल दू ।
मंत्री जी ने हाशिम से कहा बुरबक काहे तोरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी है तूने जो बच्चा रात को जो भी देखा विल्कुल सही देखा पहिले हमहू इहे देखत रहे सरकारी सर्किट हाउस के खानसामा रहे एक नेता जी हमे राजनीति में सफल होए के गुर सिखाए गए देखो आज हम मंत्री है ।
हाशिम बोला आप हमहू के ऊ गुर बताई दे ताकि हमहु आपन किस्मत राजनीति में आजमाई मंत्री जी बोले भारत कि राजनीति डिमांड एंड सप्लाई पर चलती है उसी से गॉड फादर बनते है।
राजनीति में सप्लाई दो तरह की होती है एक आप पैसे रुपये की सप्लाई करे जो सबके लिए बहुत मुश्किल काम दूसरा सुख सुविधनुसार शौक की सप्लाई करे इंसान कि दो ही कमजोरी होती है एक पैसा संपत्ति या नारी यानी शराब आधुनिक कलयुगी शौक है दोनों की आपूर्ति जो अवसर और वक्त की नजाकत के अनुसार करने में सक्षम होता है वही आज के भारत का सफल नेता है ।
मंत्री जी ने कहा कुछ अच्छे स्तर की जैसी रात देखे रहो स्तर की नारी शक्ति का टीम बनाओ और भजो देश के बिभन्न राजधानी में ग्राहक हम बताएंगे हासिम मंत्री जी का चरण पकड़ बोला धन्य है गुरुदेव शागिर्द का पहला सलाम कबूल करें आप ने तो मेरे पीछे कि खाई और आगे का कुंआ दोनों पाट दिया ।
अब हमरे जिनगी सरपट दौड़ेगी देंखे कौन कहता है दिल्ली बहुत दूर है दिल्ली तो मुठ्ठी में है।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।