आबू यौ देखू मिथिला के गाम (मैथिली गीत)
आबू आबू यौ भैया काका
आबू आबू हे दीदी बहिन
पोखरि इनार गाछि कलम छै गामे गाम
देखू घुमू अहाँ मिथिला के गाम.
गामक दलान पर लोक छै बैसल
हां हां हीं हीं करैए, नै कोई रूसल?
आबू आबू यौ भैया काका
आबू यौ देखू मिथिला के गाम
मंडन मिश्र के शास्त्रार्थ दिया बुझब
लोरिक सलेहसक पराक्रम लोक मुँहे सुनब
स्वाभिमानी अयाची के साग उपजाएब दियै कहब
बंठा चमार के वीरगाथा सेहो अहाँ सुनब.
आबू आबू यौ भैया काका
आबू यौ देखू मिथिला के गाम
दिना भदरी के लोकगाथा सब सुनब
कवि विद्यापतिक नचारी पर झूमब
बाबा नागार्जुन के जनभावना सब पढ़ब
गोनू झा के खिस्सा लोक सब मुँहे सुनब.
आबू आबू यौ भैया काका
आबू यौ देखू मिथिला के गाम
रामफल मंडल सूरजनारयण सिंह के शहादत देखू
मांगैन खबास संग राज दरभंगा के कहनाम सुनू
पान मखान संग कतरल सुपारी
चाउर मरूआ के रोटी पर धनियाक चटनी
अंगना नीपैत जलखै बनबैत देखू घर गिरहथनी
गीत गबैत धान गहूमक होइए बाध बोन मे कटनी
कहैए ‘किशन कारीगर’ अहिं सब स यौ भैया
आबू आबू यौ देखू घुमू अहाँ मिथिला के गाम.
गीतकार- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)