आफ्टर इफ़ेक्ट
आफ़्टर इफ़ेक्ट”
कोरोना आपदा के आफ़्टर इफ़ेक्ट आने लगे हैं,
हर तरफ़ से संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
आपदा के हालात आदमी के दिमाग़ में चढ़ गए हैं,
तभी तो इस दौर में अवसाद के मामले बढ़ गए हैं।
सामाजिक, राजनैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है,
दूसरों को मार खुद जीने का जतन हो रहा है।
इस दौर में घरेलू हिंसा बढ़ रही है,
घटनाओं की ग्राफ़ दिन-ब-दिन चढ़ रही है।
देश में अराजकता चारों ओर है,
हर तरफ़ सियासत का ज़ोर है।
इस दौर में भी लूट-पाट, शोषण, प्रायोजित दंगे,
राजनीति के, संकटकाल में हो रहे हैं मंसूबे नंगे।
धीरे-धीरे घटते शुरुआती मंसूबे और हौसले,
इंसानों, देशों के बीच तनाव के बढ़ते सिलसिले।
दिल पत्थर हो गए और आँखों की हया गई,
इंसान के आंसू सूख गए, आँखे पथरा गई।
आपसी विश्वास नहीं रहा, मदद के हाथ डराने लगे,
दूसरों की तकलीफ़ में भी नज़र अवसर आने लगे।
हौसला क़ायम रहे फिर से ज़ोर लगाना है,
आपदा पर तो धीरज से ही पार पाना है।