आफिस तक का सफर
पिताजी के देहान्त के बाद घर की जिम्मेदारी संगीता पर आ गयी थी । मम्मी की तबियत खराब ही रहती थी । पिता जी की पेंशन माँ को मिलती थी लेकिन वह बहुत कम थी , बस किसी तरह घर खर्च चल रहा था । संगीता की पढ़ाई खत्म होने के बाद वह नौकरी की तलाश कर रही थी । कल ही एक जगह उसका सिलेक्शन हुआ था और आज उसे जाना था ।
आज आफिस ज्वाईन करने का पहला दिन था । इन्टरव्यू के समय ही उसे बता दिया था कि यहाँ लेट बिल्कुल नही चलता समय पर आफिस पहुँचना उसके लिए चुनौती था । एक तरफ माँ की देखभाल और दूसरी तरफ नया नया आफिस , सब कुछ सोच कर संगीता को नींद भी नहीं आई ।
सुबह जल्दी उठ कर संगीता ने खाना बनाया माँ को खाना खिलाया और दवा देने के बाद पड़ौस की आंटी को माँ की देखभाल का जिम्मा दे कर वह आफिस के लिए निकल पड़ी उसने समय देखा 10 बजने में 15 मिनिट थे । 10 बजे से कम्पनी के आफिस शुरू होने का समय है ।
बस स्टाप बहुत लम्बी लाईन थी इन्तजार करेगी तो देर हो जाएगी पर्स में केवल 50 का नोट था आटो में 100-150 रूपये लगते कल ही माँ की दवा में पैसे खर्च हो गये थे । घर से आफिस करीब 3 किलोमीटर था । घड़ी की सूई तेजी से खिसक रहीं थी । संगीता ने मन ही मन कुछ निश्चिय किया तेज कदमों से मुकाम की तरफ बढ़ गयी ।
सात मिनिट पाँच मिनिट फिर और इसी के साथ उसके कदमों की गति तेज होती जा रही थी ।अब उसे आफिस का गेट नजर आ रहा था और 30 सेकेन्ड बचे थे । संगीता ने लगभग दौड़ लगा दी और उसके 15 , 10,5, फिर 3, 2 सेकेन्ड । संगीता को आफिस के गेट के सिवाय कुछ नही दिख रहा था
जैसे ही संगीता ने आफिस के गेट के अंदर कदम रखा गार्ड ने मुख्य गेट बंद कर दिया ।
संगीता अपनी सीट पर बेसुध सी पड़ गयी
तभी उसकी सीट का इन्टरकाम बजा :
” कम इन संगीता ” बास का फोन था