आफ़ताब में आग और बादल में पानी से
आफ़ताब में आग और बादल में पानी से
बहुत खुश हूँ ए आसमाँ तेरी सायबानी से
प्यारा इक ख़्वाब पलक पे आकर बैठ गया
महक उठा है मोहब्बत की मेहरबानी से
शौक़-ए-वफ़ादारी तो उसको भी ना था कुछ
कुछ बात बिगड़ती रही मेरी नादानी से
ये इंसानी फ़ितरत है महफ़िल-ए- दुनियाँ में
जलते हैं लोग यहाँ चाँद की ताबानी से
आती हैं आँधियाँ हर राह पे हर मोड़ पे
ये नहीं मुमकिन कट जाए सफ़र आसानी से
जैसे में कुछ नहीं मेरा अरमान कुछ नहीं
कम आँकने लगा वो मेरी फरावानी से
अश्क़ आँखों में गई सिजदे में सर लेकर
कैसे खुश हो गया वो ‘सरु’ की परेशानी से