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14 Jul 2024 · 1 min read

आप ही बदल गए

#दिनांक:-14/7/2024
#विधा:- ग़ज़ल
#शीर्षक:-आप ही बदल गए।

हम अपने जंजालो में और फंसते चले गए,
उन्हे लगा यारों, हम बदल गए ।

करके नजदीकी, ये दूर तलक भरम गए,
कुण्ठा के मस्तक पर ,दाग नया दे गए।

खुशी की अपील नहीं मुस्कुराहट मॉगे,
आपाधापी की जिन्दगी से अनगिन आप गए।

ऐसा नहीं कि हम उन्हे याद नहीं,
सारे दिन रात संशय में चले गए ।

किधर का मोड किधर मुड़कर चला गया,
नए का सोच पुराने से छूटते गए।

इच्छा आज भी बलवती है मिलन की।
बस दर्द हरा हो गुलाबी गुलाब हो गए।

जितना सफर किया बस ये समझा,
हर शख्स को समझते समझते हमी नायाब हो गए ।

मेरे रंग की रंगीनियत दुनिया में ऐसी फैली,
हम एक अमावस के महताब हो गए ।

दूसरो को अब क्या ही उलाहना देना,
अपने आप झांको आप ही बदल गए।

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय
चेन्नई

Language: Hindi
58 Views
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