आप या तुम
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
मुझे लगता है
कि तुम से आप
और आप से तुम
हो जाना कोई
मुश्किल काम नहीं
जैसे अब तुम्ही को
ले लो , कब आप से
तुम हो गई ,
लड़ती हो तो
मजबूरन मुझे मनाने में
जो ऊर्जा लगानी पड़ती है
थक जाता हूँ
फिर वापिस उसी
क्षमता को एकत्रित
करने में कितना समय नष्ट हो जाता है
मुददा क्या होता है
इस झगड़े का
कि तारीफ नही करी
नए हेयर स्टाइल की
नए सूट की
क्यों कि तेरे मेरे रिश्ते में
सेंध लगाने वाले
मौका ढूंढते रहते हैं
कब तू निकले लपक लें
और कुछ नही तो
हेयर स्टाइल सूट के बहाने से
थोड़ी गुफ्तगू करलें
और तुम नारीसुलभ अज्ञान से
लदी फंदी मुझपे बरस
पड़ती हो
कमल कितना अच्छा लड़का है
उसे लड़कियों की
पसंद नापसंद का सब पता है
अब उसकी इन खूबियों से
मेरा क्या वास्ता
मैं तुम्हें आत्मा से चाहता हूँ
और वो शरीर से
बस यही कसूर है मेरा
मुझे वही दिखती है हरपल
कोमल एहसास लिए
शुद्ध सुसंस्कृत मेरी सखी
और उन्हें तुझमें
पंजाब कौर ,
तो मैं क्या करूं