आप भी चल दिये
साँझ प्रिय ढल रही, लालिमा के पल लिये,
हुए सुदीप प्रज्वलित, आप भी चल दिये।
आप प्रेम सिन्धुवत,
मात्र सुबिन्दु बाँछित,
थाह भी पता नहीं,
अपेक्षा ही बाँछित।
सितारे कोटि व्योमतल,चमक धवल लिये,
हुए सुदीप प्रज्वलित, आप भी चल दिये।
टूटे रिश्ते सभी,
छूटे अपने कभी,
आप सहारा शेष,
आँसू बूँदें लेश।
नीरव सा ये जीवन, अनास्था पल लिये,
हुए सुदीप प्रज्वलित, आप भी चल दिये।
क्षणभंगुर यह देह,
ज्यों वर्षा का मेह,
मृत्यु कर कुठार ले,
खड़ी सदा मार्ग में।
चारु चंद्र चंद्रिका, प्रीति उर विमल लिये,
हुए सुदीप प्रज्वलित, आप भी चल दिये।
नियति नटी प्रकृति के,
अनिश्चित विचार का,
अनुमान नही कभी,
व्यवहार अबूझ सा।
काल भी सुतीव्र गति,सुनिर्णय अटल लिये,
हुए सुदीप प्रज्वलित, आप भी चल दिये।
अल्प सी अवधि मिली,
प्रीति रीति साध लें,
त्याग दें कलुष सकल,
सबको नित प्यार दें।
सुप्रतीक्षा आज भी,भाव उर अमल लिये,
हुए सुदीप प्रज्वलित, आप भी चल दिये।
–मौलिक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र.)