आप आये जिँदगी में रब की ही इनायत है।
गज़ल
212…….1222…….212…….1222
आप आये जिँदगी में रब की ही इनायत है।
आप से ही जाना है चीज क्या इबादत है।
देश धर्म मानवता अब कहीं नहीं दिखती,
कुर्सियों की चाहत ही बन गई सियासत है।
आप ही बनाओ या आप ही मिटाओ जी,
आपके ही हाथों में सौंप दी रियासत है।
आप ही तो रक्षक हैं आप ही निगेहबां हैं
बेचने चले हो घर कैसी ये हिमाकत है।
दूर देश जा बैठे अपने शौक के खातिर,
भूखे बाप मां तड़पें जिंदगी पे लानत है।
आप बच गये गर सब चला भी जाएं तो,
कुछ भी तो नहीं खोया जिंदगी सलामत है।
बांटते रहो यारो प्यार सारी दुनियां में,
प्यार लेना देना ही प्रेमी की मुहब्बत है।
……..✍️ प्रेमी