आपो दीपो भवः
आपो दीपों भवः
घर के भीतर
घर के बाहर
द्वार पर
दहलीज पर
गली, गलियारों में
कई दीपक जलाए
भीतर बाहर सब ओर
आलोक फैल गया
अब…..
अपने भीतर दीप जलायें
मन का कौना कौना
रोशन हो जाये
इतना आलोक
इतना उज्जवल प्रकाश
फैल जाए कि
कहीं द्वेष न रह जाए
घृणा के कण बह जाएं
वैर वैमनस्य न रहे
ईर्ष्या भाव धुल जाए
मन के कौने बहुत विशाल है.
प्यार का दीपक राग गाएं
अपनेपन के इंद्र धनुष बनें
सहानुभूति के इंद्रजाल
में रह कर हर एक का
मसीहा बनें
किसी का वेदना
बिमारी, परेशानी में
मदर टेरेसा बनें
किसी का सहारा
किसी का कवच बनें
किसी को सूरज बन कर
ज्ञान गंगा दें
संस्कृति संस्कार दें
यही असली दीपावली है-
जग के लिए
आपो दीपो भवः
डॉ. करुणा भल्ला
1