आपस का प्रेम
मिलना जुलना यारी दोस्ती
अब बीती बातें सी लगती हैं
करते हैं छल अपने ही अब तो
दोस्त भी छुरा घोंपने बैठा है
भाई भाई का बैर आपस में
सारी हदें पार कर बैठा है
चंद पैसों की खातिर वो अब
स्नेह प्रेम तक भुलाए बैठा है
हुआ पल्लवित पोषित जिनसे
उन मात पिता को बिसराया है
अधिकार मिले जैसे ही उसको
कर्तव्यों से विमुख हो बैठा है
भगवान तुम्हारी दुनिया का
चलन भी अजब निराला है
छल की बातें हर कोई समझे
प्रेम और प्रीत भुलाए बैठा है
प्रेम और प्रीत भुलाए बैठा है…
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट( मध्य प्रदेश)