आपसे हूँ
आपसे हूँ अब गुलजार खुदा जाने क्यों
हर बुरे वक्त तू आधार खुदा जाने क्यों
लाड़ मेरे अन्दर था निकला वो वाहर
हो गयी है दिल की हार खुदा जाने क्यों
पास वो आकर बातें जब करता मीठी
है बढी धड़कन रफ्तार खुदा जाने क्यों
साथ मेरे बन छाया चलता वो हर पल
हो गया जीवन सार खुदा जाने क्यों
कट रहे है दिन अवसाद भरे क्यों मेरे
आज महका फिर परिवार खुदा जानें क्यों
हो गयी कोन खता जो हमसे है तू खफा
फूल ही ये हुए अंगार खुदा जाने क्यों
प्रीत की रीत निभा वो बन जाते मेरे
मन गया ही अब त्यौहार खुदा जाने क्यों
सोचती ही रहती मैं मिलने आऊँगी
काम का है बस अम्बार खुदा जाने क्यो
खूब करती मनमानी अपनी तो मैं यूँ
इसलि ये प्यार भरी फटकार खुदा जाने क्यों