आपसे दूरियाँ
आपसे दूरियाँ हो गयीं
ख़्वाब सी चिट्ठियाँ हो गयीं
कौन अब ज़ेह्नो-दिल में रहे
ख़ाक ये बस्तियाँ हो गयीं
पाँव अपने ज़मीं पर रहे
चाँद सी रोटियाँ हो गयीं
वो बदलने चले थे जहाँ
ख़्वाहिशें दरमियाँ हो गयीं
हो गये किसलिए हम बड़े
दूर सब मस्तियाँ हो गयीं
हैं लगे डाल पर फूल-फल
जब हवन पीढ़ियाँ हो गयीं
आ गये जो मेरे घर में वो
बाम पर शोख़ियाँ हो गयीं
माँ हुई मॉम जब से यहाँ
नींद में लोरियाँ हो गयीं
घर लगे बाग़े-जन्नत ‘असीम’
फूल सी बेटियाँ हो गयीं
– शैलेन्द्र ‘असीम’