आपसे क्यों मुहब्बत हुई
गजल
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आपसे क्यों मुहब्बत हुई
प्यार की तू इमारत हुई
दिल बहक जब गया आप पर
प्यार की तब इबादत हुई
हो गई है खता कोन सो
जो यहाँ यह वकालत हुई
जब बहस छिड़ गई तीन अप
तब बड़ी ही फजीहत हुई
जब हुई बात मुद्दे पे तो
खूब जमकर सियासत हुई
मर्द तो यह समझता सरल
बाप के लिए अजीयत हुई
खूब हल्ला मचा इस पे तो
बात फिर तो शर्रियत हुई
रूख कट्टर धर्म का हुआ
पर न कोई जहानत हुई
आपसी भेद से दिल बटे
बीच उनके मसाफत हुई
अजीयत — यातना
जहानत—समझदारी
मसाफत –दूरी
डॉ मधु त्रिवेदी