आपने जो इतने जख्म दिए हमको,
आपने जो इतने जख्म दिए हमको,
आपकी इस निशानी को क्या नाम दूं।
दे दिया इलज़ाम मुझे बेवफ़ा होने का,
आपकी इस मेहरबानी को क्या नाम दूं।
आपको अपना सब कुछ समझ कर हम हो गए सबसे पराए,
हाय अब इस जिंदगानी को क्या नाम दूं।
खिली हुई धूप में तारे देखने लगी थी मैं,
उफ्फ अपनी इस नादानी को क्या नाम दूं।
मोहब्बत कर बैठी थी बेइंतहा उस शख़्स से जिसे न कदर थी प्यार की,
कोई बताए “रौशनी” दीवानी को क्या नाम दूं।
ज्योति रौशनी