आपदा
कहर !
प्रकृति का या मानव का प्रकृति पर ?
कौन निश्चित करेगा ?
कौन मरेगा , कौन बचेगा ..?
पर्वत खोद कर बेच डाले ..
जंगल जला खाक कर डाले ।
सोचता हूँ मैं सुखी रहूँगा किसी को मारकर ..
नहीं मिलेगा तुझे भी सुख औरों को काटकर ।
दोहन –
प्रकृति या खुद का ?
खुद बचना है तो बचाना होगा .
प्रकृति को बचा कर खुद बचना होगा ।
प्रलय –
क्या है ?
प्रकृति का कहर , मानव का कहर मानव पर ?
खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है मानव .
ना जाने फिर क्यों प्रकृति उजाड़ रहा है मानव ।
प्रलय । विकाश का , विज्ञान का ..
मंजर है हर कदम विनाश का ।।
माणिक्य / चंद्र प्रकाश / पंकज