आपदा में अवसर का खेल
आराध्य ने
अपने भक्तों को-
आपदा में अवसर ढूंढने का
मंतर दिया.
भक्त जल्द समझ गए
बाकी सब खिजियाते रह गए
भक्त-जो पहले
‘चौकीदार’ थे वे सब
अब ‘अवसरवादी’ हो गए
कोरोन काल में-
अपने आराध्य के इस मंतर
का बखूबी इस्तेमाल किया-
तो ‘मैं भी चौकीदार’ उर्फ
‘अवसरवादी’
मालामाल हो गए.
अपने अखबारों में
पढ़ा ही होगा-
रेमडेसिवीर, ऑक्सीजन
सिलेंडर की कालाबाजारी
चाहे अस्पतालों में
बेड का जुगाड़ करना-
सबमें इन अवसरवादियों
ने बराबर ‘मौका’ देखकर
‘चौका’ लगाया
जब जूनियर अवसरवादियों
ने चौका लगाया
तो सीनियर अवसरवादी
मौके पर ‘छक्का’ लगाना
कैसे चूकते!!
कोरोना वैक्सीन में
भी ‘आपदा में अवसर’ का ही
खेल चल रहा है-
20 रुपए की वैक्सीन को
1200 रुपए में खरीदना
अपने स्वयंभू के
आपदा में अवसर का ही
कमाल है भाऊ!!
(कोवैक्सीन के मालिक ने खुद पिछले साल के एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके वैक्सीन की कीमत पानी के एक बोतल से भी कम होगी.. )
नोट- यह कविता नहीं है, सिर्फ विचार अभिव्यक्ति है……