आपत्तियाँ फिर लग गयीं (हास्य-व्यंग्य )
आपत्तियाँ फिर लग गयीं (हास्य-व्यंग्य )
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हमारी संस्था ने स्वच्छता प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आवेदन दिया था , जिस पर निरीक्षण करके स्वच्छता कमेटी को अपनी रिपोर्ट देनी थी ।कई बार से आपत्तियां लग रही थीं। हर छठे महीने हम लोग स्वच्छता कमेटी को बुलाते थे। उनके आने-जाने का खर्च तथा ठहरने, भोजन आदि का प्रबंध भी हमको ही करना पड़ता था । इसके बाद भी वह कोई न कोई आपत्ति लगा कर चले जाते थे ।
इस बार हमने सारी आपत्तियां पूरी कर रखी थीं। उम्मीद थी, स्वच्छता प्रमाण पत्र मिल जाएगा । लेकिन जब स्वच्छता कमेटी के लोगों ने संस्था का निरीक्षण कर लिया तब आकर उदास मुद्रा में हमारे पास बैठ गए। हम समझ गए , दाल में कुछ काला है।
कमेटी का एक सदस्य बोला “आपकी कमियाँ अभी पूरी नहीं हुईं। यह जो संस्था भवन की साफ सफाई से संबंधित काम है, उसमें कमी है । मानक अभी अधूरे हैं।”
“मगर.. वह तो हमने पूरी कर दी है। आपने कहा था ,जमीन पर पानी का पोछा लगाने के काम के लिए एक डायरी रखी जाएगी । वह हमने रख ली है ।”
“हां ! वह तो आप ने रख ली है ,लेकिन यह पर्याप्त नहीं है ।”
हमने कहा” सब कुछ तो आप के कहने के मुताबिक कर दिया । सबसे पहली बार आप आए तो आपने आपत्ति लगाई ,कहा पोछा दिन में पॉंच बार होना चाहिए ।अगली बार हमने वह आपत्ति पूरी कर दी । फिर आपने कहा कि पोछा लगाने के लिए आपने पानी की तीन बाल्टियाँ नहीं रखी है । एक बाल्टी में पोछा साफ होगा, दूसरी बाल्टी में पोछे का कपड़ा धुलेगा तथा तीसरी बाल्टी में कीटाणु नाशक डालकर घोल के साथ पोछे के कपड़े को हिलाया जाएगा । हमने तीनों प्रकार के बर्तन रख लिए। छठे महीने जब आप आए ,तो आपने एक नई आपत्ति लगाई..डायरी की । वह भी हमने पूरी कर ली ।अब क्या रह गया ? ”
जांच कमेटी के एक सदस्य ने कुटिलता पूर्वक मुस्कुराते हुए कहा “आपने पोछा- निरीक्षक की नियुक्ति तो की ही नहीं है। वह पोछा- कर्मचारी के साथ साथ सब जगह घूमे, यह जरूरी होता है।”
हमें गुस्सा आने लगा । हमने कहा “भाई साहब ! अगर पोछा- निरीक्षक जरूरी है ,तो यह बात आप हमें पिछली जांच के समय भी तो बता सकते थे ?”
जांच कमेटी के दूसरे सदस्य ने इस बार उत्तर दिया “जब हमें उचित लगेगा, हम आपको आपत्ति से अवगत कराएंगे । सारी आपत्तियॉं एक बार में नहीं गिनाई जातीं।”
अब जांच कमेटी के तीसरे सदस्य ने कहा “आपको लिख कर दे देता हूं।”
हमने कहा “दे दीजिए ।वह भी पूरी कर देंगे ।पोछा- निरीक्षक को वेतन जाएगा और हमारा खर्चा बढ़ जाएगा।”
सुनकर जांच कमेटी के सदस्य ने संस्था के बाबू को जो हमारे बराबर ही खड़ा हुआ था बुलाया और इशारे से उसके कान में कुछ समझाया। बाबू इशारों को समझ कर हमारे पास वापस आया और हमसे उसने बुदबुदाते हुए कुछ कहा ।
हमने जवाब में कहा ” एक पैसा नहीं देंगे”
बाबू ने फिर हमें राय दी ।इस बार वह गबुदबुदाया नहीं ,बल्कि थोड़ा मुखर होकर उसने कहा” साहब ले- देकर काम निपटा लीजिए ।वरना जांच होती रहेगी और आपत्तियां लगती रहेंगी ।”
हमने और थोड़ा गुस्सा होकर कहा “एक पैसा नहीं देना है। अगर पैसा देकर ही काम कराना होता तो कई साल पहले दस मिनट में प्रमाण पत्र मिल गया होता।”
जांच कमेटी के एक सज्जन ने शान्त भाव से कहा “कोई बात नहीं । हमारा काम जांच करके आपत्तियां लगाना है । हम लगाते रहेंगे ।”
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451