आपको बू आती है…
आपको बू आती है
ओह…आपको तो बदबू आती है
मेरे बदन से
मेरी परछाई से
और कभी कभी तो
मेरी आदतों से
इस बदबू को दूर तो कर सकता हूं
लेकिन कीमत मुझे चुकानी पड़ेगी
और दर्द मुझे मिलेगा,
जबकि परेशानी आपकी दूर होगी,
बदबू जो तुम्हें आती है
उसमें सदैव रहता है
घमंड जाति का
अहम ऊंच नींच का
अंतर अमीरी – गरीबी का
अहसास बड़े – छोटे का
और मुझे कुचलने की हनक
आपके निर्दयी व्यवहार में
जिसे मैं निरंतर
देखता रहूं
सहता रहूँ
यही आपकी खुशी होगी ।
इसको दूर करने का उपाय नहीं है
मेरे पास ।
क्या आप बता सकते हैं
कोई उपाय
क्योंकि मुझे प्यार है
अपने शरीर से
अपनी सभ्यता और संस्कृति से
अपने अस्तित्व से,
जिसको मिटाने के बाद
आपको बू नहीं आएगी ।
लेकिन मेरा अस्तित्व
मिट जायेगा हमेशा के लिए
जो आप चाहते हो,
आपको बू नहीं आती है
आप डरते हो
मेरे बढ़ते हुए कदमों की
आहट भर से
आपका जी मचलने लगता है
मेरी सफलता से
आपका दम घुटने लगता है
वैश्विक मंचों पर मेरी उपस्थिति से ।
अब अपना ये बचकाना
पुराना बहाना छोड़ दो
मिलो इंसान से इंसान को
इंसानियत से जोड़ दो ।
आपकी बू ओह…
बदबू का अंत
सिर्फ प्रज्ञा मैत्री करुणा से हो सकता है,
इसलिए छोड़ दो दुनिया के झंझट
मिल जाओ बुद्ध के त्रिसरण संग
अपनाओ अष्टांगिक मार्ग को
और पंचशील को लेकर
दुनिया में पेश करो मानवतावादी सोच को ।
आर एस आघात