आपको देख कुछ ख़्वाब पलने लगे
आपको देख कुछ ख़्वाब पलने लगे
जो बुझे थे दिये फिर से जलने लगे
क्या पता था संवरने लगेंगे वो जब
देखकर आइने भी पिघलने लगे
जब अँधेरे में चलना भी मुश्किल हुआ
जुगनुओं को लिये साथ चलने लगे
ग़ैर पर भी भरोसा सा होने लगा
जब से अपने मेरे मुझको छलने लगे
सच कहेंगे सदा कल कसम खाई थी
आज अपना बयाँ वो बदलने लगे
ये भी ‘आनन्द’ है एक मंज़र ग़ज़ब
देखना रंग जब शम्स ढलने लगे
– डॉ आनन्द किशोर