आपकी नज़रे इनायत
आपकी नज़रे इनायत हो तो फिर क्या चाहिए,
प्यार में थोड़ी शरारत हो तो फिर क्या चाहिए।
धूप भी छाया है जब हो साथ दामन आपका,
साथ में थोड़ी मुहब्बत हो तो फिर क्या चाहिए।
आपके साथी हैं हमराही हैं हम हैं हमकदम
आपकी नज़रे इनायत हो तो फिर क्या चाहिए।
महफिलों में आप ख़ुद से इश्क के इज़हार की,
दे रहे मुझको इजाज़त हो तो फिर क्या चाहिए।
तिश्नगी के दायरे अब बस में तो मेरे नहीं,
नाम इसका ही इबादत हो तो फिर क्या चाहिए।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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