आन्दोलन
“भारत माता की।” वातावरण में गूंजता एक स्वर।
“जय।” प्रतिक्रिया स्वरुप कई स्वर एक सुर में गूंजे।
“एक, दो, तीन, चार।” वह स्वर इस बार तीव्र आक्रोश के साथ।
“बंद करो ये भ्रष्टाचार।” उसी आक्रोश को बरकरार रखते हुए सामूहिक स्वर।
पूरे देश में आजकल उपरोक्त दृश्य मंज़रे-आम पर है। लोग गली-मुहल्लों में रैलियां निकाल-निकालकर अन्ना हजारे के ‘जनलोकपाल बिल’ के समर्थन में सड़कों पर उतर आये हैं। नारों के माध्यम से सरकार और विपक्ष के भ्रष्ट नेताओं तथा बड़े अफसरों तक को फटकार रहे हैं। देश के विभिन्न राज्यों से बैनर और सलोगन्स के साथ आन्दोलन समर्थक दिल्ली के रामलीला मैदान में पधार रहे हैं। जहाँ अन्ना हजारे पिछले बारह दिनों से अनशन पर बैठे हैं। उनके समर्थक बीच-बीच में उत्साहवर्धन करते हुए नारे लगा रहे हैं। ‘अन्ना नहीं आंधी है। देश का दूसरा गांधी है।’ ‘अन्ना तुम संघर्ष करो। हम तुम्हारे साथ हैं।’
चारों तरफ जन सैलाब। भारी भीड़ ही भीड़। लोग ही लोग। टोपियाँ ही टोपियाँ। जिन पर लिखा है—मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना। इस हंगामे को कवरेज करते सभी चैनलों के मीडियाकर्मी, सभी चैनलों पर इसी तरह की मिली-जुली बयानबाज़ी। रामलीला मैदान के प्रवेश द्वारा पर पुलिस का सख़्त पहरा तो था ही, साथ ही आन्दोलन का सीधा प्रसारण करने वाली मीडिया की गाड़ियों ने सड़क पर यहाँ-वहाँ क़ब्ज़ा किया हुआ था। भीतर मंच भी बनाये हुए थे। जहाँ उनके एंकर आन्दोलन में आये प्रमुख लोगों, नेताओं का लाइव साक्षात्कार ले सकें। आन्दोलन में आये आम आदमी ये सोचकर की कैमरे पर उनका चेहरा भी उभर आये! टी.वी. में उनकी एक झलक दिख जाये। स्टेज के आस-पास भीड़ और धक्का-मुक्की करने लगे। ‘आजतक’ की एंकर श्वेता सिंह डाँट कर उन्हें पीछे होने को कहती। लेकिन लोग थे कि पीछे हटके राजी नहीं। यही हाल अन्य मीडिया चैनलों के मंच पर भी था। मीडिया इसे आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी क्रान्ति कहकर प्रचारित-प्रसारित कर रहा था। जिस कारण लोग-बाग अपने घरों से निकलकर रामलीला मैदान की ओर आ रहे थे। जिस कारण मैदान खचा-खच भरा हुआ था।
रामलीला मैदान में उपस्थित “मैं” स्वयं हैरान था—’कैसे एक साधारण-सी कद-काठी वाले व्यक्ति ने समूचे राष्ट्र को ही आन्दोलित कर दिया है?’
“ये देश में बदलाव ला के रहेंगे लखन, देख लेना!” मेरे बग़ल में बैठा एक शख़्स अपने किसी परिचित से बोला।
“खाक बदलाव लाएंगे! आने वाले वक़्त में एक दो अन्य पार्टियों का जन्म हो जायेगा इस आन्दोलन से, भरत भाईसाहब।” लखन ने रूखे स्वर में कहा, “भूल गए जेपी आन्दोलन को, जिसके बाद यूपी और बिहार में कुछ और भ्रष्टाचारी पार्टियों का जन्म हुआ। जिन्होंने देश की जगह अपने परिवारों को समृद्ध किया। अरब-खरबपति बन गए।”
“ये नया लौंडा केजरी भी अन्ना के मंच से अच्छा भाषण देवे है। मन्ने तो लागे यो देश का प्रधानमन्त्री भी बन सके एक दिन।” भरत ने लखन की बात पर अपनी प्रतिक्रिया दर्शायी।
“यो पहले किसी प्रान्त का मुख्यमंत्री तो बन के दिखा दे।” उनके पीछे बैठे बुजुर्ग ने अपनी ज़ुबान खोली, जो बीड़ी फूंक रहे थे, “प्रधानमन्त्री बनना तो दूर की बात है।”
“सो तो है ताऊ!” लखन ने ताऊ की बात का समर्थन किया।
“वैसे ताऊ ये भी अपने हरियाणे का है। भविष्य में इसने पार्टी बनाई तो ये तो मौज करेगा ही, इसकी पीढ़ियाँ भी राज करेंगी, लिख के ले लो।” भरत ने किसी भविष्यवक्ता की तरह अपनी प्रतिक्रिया दी।
“मगर अन्ना ने अपने आन्दोलन से किसी को भी पार्टी बनाने से मना किया है।” ताऊ ने बीड़ी फूंकते हुए कहा और धुंआ लखन के मुँह की ओर छोड़ दिया।
“ताऊ, बीड़ी का धुंआ पीछे की और छोड़िये।” लखन ने नाराज़ होते हुए कहा, “इसके भाषण में सुनते नहीं क्या, ये कई बार कह चुका है कि अगर राजनीति के भीतर की सफ़ाई करनी है तो हमें राजनीति के कीचड़ में जाना होगा।”
“हाँ, तू बोल तो बरोबर रहा है बेटा! देख ऊंट किस करवट बैठेगा।” ताऊ बीड़ी का आख़िरी कस खींचकर बीड़ी बुझाते हुए बोला।
“अभी तो मुझे अन्ना जी के प्राणों की चिन्ता हो रही है। आज उपवास का बारहवाँ दिन है।” भरत ने अन्ना जी के प्रति अपनी चिन्ता जाहिर करते हुए कहा।
“अगर एक-दो दिन और उपवास खिंच गया तो अन्ना की तेरहवीं भी यहीं रामलीला मैदान में खानी पड़ेगी।” ताऊ ने ये कहा तो आस-पास के माहौल में हँसी का ठहका गूंज गया। मैं भी खिलखिलाकर हँस पड़ा। गंभीर होते माहौल को ताऊ ने खुशनुमा बना दिया।
“ताऊ तैने तो मेरे मुँह की बात छीन ली।” भरत भी हँसते हँसते बोला।
तभी मंच से ऐलान हुआ कि सरकार ने अन्ना हजारे की समस्त मांगों को बिना शर्त स्वीकार कर लिया है। घोषणा की है कि जल्दी ही लोकपाल विधायक पर सख़्त कानून बनाकर इसे लागू किया जायेगा ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। मैंने भी मन-ही-मन ये सोचकर राहत की साँस ली कि चलो अब अन्ना जी का अनशन समाप्त हो जायेगा। साथ ही ये आन्दोलन भी इतिहास में दर्ज़ हो जायेगा।
“लो ताऊ आपके बोलने की ही कसर बाक़ी थी कि अन्ना जी के उपवास के टूटने का सन्देश भी आ गया। सरकार ने लोकपाल बिल पर कानून बनाने की मंज़ूरी दे दी है।” लखन ने ख़ुशी का इज़हार करते हुए कहा, “अगर आजकल में अन्ना का व्रत नहीं टूटता तो ताऊ की बात सच होते देर नहीं लगती।”
हँसी, तालियों और अन्ना की जय-जयकार से पूरे रामलीला मैदान में एक उत्सव का सा माहौल पैदा हो गया। हृदय श्रद्धा से अन्ना हजारे के आगे नत-मस्तक हो गया। मुझे यह जानकार अत्यंत प्रसन्नता हुई कि अन्ना तेरहवें दिन अपना अनशन तोड़ेंगे। मैंने भी राहत की सांस ली—’चलो देर आये दुरुस्त आये’ वाली बात। रामलीला मैदान से निकलकर मैं बाहर फुठपाथ पर आ गया। जहाँ सड़क किनारे अन्ना के नाम पर आन्दोलन से जुड़े बैनर, पोस्टर, टोपियाँ, झंडे, स्टीकर आदि बेचने वाले बैठे थे। जिन्हें मैं अक्सर चौराहों पर गाड़ियाँ साफ़ करते, कभी अखबार-किताबें या अन्य सामान बेचते और भीख मांगते भी देखता था।
“अम्मा क्या सचमुच अन्ना अपना अनशन ख़त्म कर देंगे।” बड़ी मायूसी से एक आठ-नौ बरस की लड़की ने अपनी माँ से पूछा।
“हाँ बेटी।” उसकी माँ भी उसी मायूसी से बोली।
“ये तो बहुत बुरा हुआ, अम्मा।” बच्ची के स्वर में असीम वेदना उभर आई।
“ऐसा क्यों कह रही हो गुडिया? कोई आदमी बारह दिनों से भूखा है और अपना अनशन ख़त्म करना चाह रहा है। यह तो ख़ुशी की बात होनी चाहिए।” मैंने टोकते हुए कहा, “इसका मातम क्यों मना रही हो?”
“ऐसी बात नहीं है बाबूजी, पिछले ग्यारह-बारह दिनों से आन्दोलन का सामान बेचकर हम पेटभर भोजन खा रहे थे। अनशन टूटने के साथ ही आन्दोलन भी ख़त्म हो जायेगा तो हमें फिर से जिंदा रहने के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा। बच्चों को भीख मांगनी पड़ेगी। लोगों की जूठन खाकर पेट भरना होगा। कूड़े-करकट के ढेर में अपनी रोज़ी-रोटी तलाश करनी होगी। पता नहीं दुबारा पेटभर भोजन अब कब नसीब होगा? बच्ची यही सोच-सोचकर परेशान है।” उस औरत ने बड़े ही करुणा भरे स्वर में कहा, “क्या ऐसे आन्दोलन सालभर नहीं हो सकते बाबूजी?”
माँ-बेटी के दुखी, हतास-उदास चेहरों को देखकर मैं यह सोचने लगा—’काश! कोई एक आन्दोलन ऐसा भी हो, जिसमें इन ग़रीबों को पेटभर भोजन मिले।’
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