आनन्द नृत्य
आनन्द नृत्य।
हो गई प्रकृति कुपित
कर रही पर्यावरण खंडित
हो रहा है मानव दंडित
मच रहा है हाहाकार
भूतल गगन दि्गदिगंत
कर दिया सूर्य तपित
फट रहे ज्वालामुखी
उबल रहा उदधि प्रबल
जल रहे पेड़,जंगल
नहीं बचा घास का कण
मचा घमसान भावनाओं में
न जान पाये उचित- अनुचित
धूर्तता है महिमामंडित
असत्य की हो रही पूजा
सत्य आज भूलूंठित
अराजकता के हरकारे
मचा रहे बवंडर हर पल
महाकाल का फरमान कोई
प्रलय आने को है बाधित।
कल्याणकारी सुनो, हे शिव
मत करो तांडव नृत्य तुम
आशुतोष, करना ही है नृत्य
करो आनन्द नृत्य, ओ शिव
बचा लो यह धरा यह गगन
भर दो मानव में शिवत्व।