आनंद
आनंद (मुक्तक)
आनंद का स्रोत संतोष होता।
आनंद हर्षित सदा मस्त होता।
संतोष को जो पुकारा सुमन से।
वही प्रेम आनंद के बीज बोता।
पाया वही सुख की सरिता बहाया।
गाया वही गीत कविता बनाया।
तोषी सदा उर हिमालय सरीखा।
देखा गगन चढ़ स्वयं को नचाया।
संतोष की डाल मेवा फला है।
आनंददायक मधुर रस घुला है।
पीता इसे है सदा भाग्य उन्नत।
योगेन तप से सुनिश्चित मिला है।
आनंद अद्भुत नजारा दिखाये।
आनंद अमृत रसायन पिलाये।
आनंद संतोष के ही उदर से।
चलता निकल कर मनुज मन सजाये।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।