आनंद
उन्होंने कहा शहर में आनंद मेला है,
सो हम भी आनंद से भाव विभोर हो,
पहुंचे आनंद के मेले में।
पता चला अब आनंद दिल में नहीं,
जेब में बसता है।
सालों से लोन मेला से लोन ले, आनंद लेते रहे हैं।
आज़ सच में आनंद का मेला था।
चाट का ठेला था, लोगों का रेला था,
बच्चों का चेला पेला था।
कोई गुब्बारे में आनंद ढूंढ रहा था, तो कोई झूले पर,
बिना भूख के खाने का आनंद था,
बिना जरूरतों के खरीदारी का आनंद था।
लाउडस्पीकरों का शोर आनंद का ऐलान कर रहे थे,
जेब हल्की कर, झूठी मुस्कुराहट और मुट्ठी भर आनंद ले
अंधियारी भूखी नंगी तंग गलियों से,
होकर हम पहुंचे अपने घर।
अब ह्वाट्सएप पर आनंद बिखेर रहे हैं
और ठेंगा बटोर रहे हैं,
आनंद से वंचित लोगों का।