आनंद
आनंद अंतर्मुखी होता है जिसमें असीम सुख छिपा होता है।मन चंचल है जो पूर्ण वेग से इधर ऊधर भागता है।कहीं तृप्ति नहीं!ना पूर्णता है ना प्रकाश पर फिर भी मन स्निग्ध है अलंकृत है।मकड़ी की मुद्रा में विशेष आकर्षण होता है जिसमें फंसने वाला जीव विवश होता है और दिग्भ्रमित भी!
मनोज शर्मा