आध्यात्मिक जीवन जीने का सरल उपाय। ~ रविकेश झा
आध्यात्मिक जीवन के सार को समझना।
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप लोग आशा करते हैं कि आप सभी अच्छे और स्वस्थ होंगे और ध्यान के माध्यम से स्वयं को जान रहे होंगे ध्यान ही हमें स्वयं को पूर्ण जानने में महत्वपूर्ण योगदान देगा ध्यान का महत्व भी बहुत है। यदि आप आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते हैं फिर आपको ध्यान और जागरूकता से जुड़ना होगा तभी आप पूर्ण स्पष्टता के साथ जीवन जीने में उत्सुक होंगे। हमें जीवन को समझना होगा अभी हम स्वास ले रहे हैं कल हम स्वास नहीं लेंगे कोई पक्का अनुमान नहीं है हमारे पास की हम कल नींद से उठेंगे की नहीं कोई रास्ता नहीं है मृत्यु से बचने का इसीलिए अभी समय है मृत्यु को जानने का जीवन को जानने का अभी जो अवसर मिला है अभी जो ऊर्जा है फिर वह खत्म होगा अभी समय है अभी हम होश में आ सकते हैं। लेकिन किसको परवाह है सब कुछ न कुछ करने में ऊर्जा को लगा रहे हैं कुछ पाने में जिसका कोई सूक्ष्म से कोई मतलब नहीं सब मशीन बनना चाहता हूं कोई मनुष्य नहीं होना चाहता है। कुछ न कुछ हासिल करने में सब लगे हुए हैं, हमें स्रोत पर ध्यान देना होगा स्वयं की खोज पर ध्यान केंद्रित करना होगा लाभ हानि दोनों को स्वीकार करना होगा नास्तिक और आस्तिक दोनों चरण से गुजरना होगा। तभी हम जीवन और मृत्यु से परे जा सकते हैं, इसलिए हमें आध्यात्मिक जीवन से मित्रता करना उचित होगा और कोई उपाय नहीं है स्वयं को आध्यात्मिक दृष्टि से देखना होगा, कैसे हम जी रहे हैं ये सभी बात पर ध्यान देना होगा। आध्यात्मिक जीवन का मतलब मात्र धार्मिक प्रथाओं या अनुष्ठानों का पालन करना नहीं है, यह जीवन के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण है जो आपके आंतरिक स्व को पोषित करता है। यह आपको अपने सच्चे उद्देश्य से जुड़ने में मदद करता है और शांति और पूर्णता के तरफ़ हमें ले जाता है। शरीर विचार भावना से परे ले जाता है तब हम पूर्ण शांत हो जाते हैं फिर हमें तनाव दुख नहीं घेरता है। आध्यात्मिकता को अपनाने से आपको मानसिक सेहत में सुधार हो सकता है, रिश्तें में सुधार हो सकता है और जीवन की चुनौतियों में स्पष्टता मिल सकती है। इसीलिए हमें ध्यान में रह कर अभ्यास के माध्यम से हम पूर्ण शांति के तरफ़ बढ़ सकते हैं।
माइंडफुलनेस अभ्यास से शुरुआत करें।
आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने का सबसे आसान तरीका है माइंडफुलनेस को अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। माइंडफुलनेस में बिना किसी निर्णय के वर्तमान क्षण में मौजूद रहना और वर्तमान में पूर्ण स्थिर हो जाना सबसे उत्तम है। इसे ध्यान, गहरी सांस लेने के व्यायाम या बस हर दिन कुछ पल मौन के चिंतन करने के ज़रिए हासिल किया जा सकता है। पहले हमें विचार को देखना होगा तभी हम भावना विचार से ऊपर उठ सकते हैं। जो भी विचार या कल्पना मन में आ रहा है तुरंत उसे देखना शुरू करें इसके जड़ का पता लगाना आवश्यक है ये उठता कहां से है ये निरंतर अभ्यास से हम ठहर सकते हैं शून्यता तक पहुंच सकते हैं, माइंडफुलनेस का अभ्यास करने से दिमाग शांत होता है, तनाव कम हो जाता है और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ाता है। हर दिन मात्र पांच मिनट चुपचाप बैठकर अपने विचार को निरीक्षण करने से शुरुआत करें। जैसे-जैसे आप अभ्यास के साथ सहज होते जाते हैं, धीरे-धीरे अवधि बढ़ाते जाएं।
प्रकृति से जुड़ें।
प्रकृति में समय बिताना आपके आध्यात्मिक जीवन को बढ़ाने का एक शक्तिशाली तरीका है। प्रकृति का मन पर शांत प्रभाव पड़ता है और यह आपको स्वयं से बड़ी किसी चीज़ से जुड़ने की अनुमति देता है। चाहे वह पार्क में टहलना हो, पहाड़ों पर चढ़ना हो या बस समुंद्र नदी के किनारे बैठना हो, लेकिन होश साथ में रहना आवश्यक है। प्रकृति में स्वयं को डुबोना आपकी आत्मा को ताज़ा कर सकता है और एक नया दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है। प्रकृति पांच चीजों से बना है हमें पांच तत्व पर ध्यान देना होगा चार तत्व को हम प्रतिदिन उपयोग कर रहे हैं पृथ्वी जल वायु अग्नि इस सभी में हमें महारथ हासिल करना होगा हर तत्व को ध्यान के साथ उपयोग करना होगा, हम प्रतिदिन कर रहे हैं लेकिन जानने के जगह क्रोध, मैत्रेय की जगह भोग प्रेम के जगह घृणा हम सब कचरा भर लिए हैं हमें सभी को ध्यान के द्वारा शुद्ध करना होगा रूपांतरण करना होगा। इसके लिए हमें ध्यान के साथ आगे बढ़ना होगा।
कृतज्ञता विकसित करें।
कृतज्ञता आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला है। अपने जीवन में सभी चीजों को स्वीकार करके और उनकी सराहना करके, आप अपना ध्यान अपनी कमी से हटाकर अपनी क्षमता पर केंद्रित कर सकते हैं। यह सकारात्मक दृष्टिकोण संतोष और खुशी को बढ़ावा देता है। एक कृतज्ञता पत्रिका रखने का प्रयास करें, जहां आप हर दिन तीन ऐसे चीज़ लिखे जिनके लिए आप आभारी हैं शुरआत स्वयं से करें अपने शरीर के प्रति स्वास के प्रति प्रकृति के प्रति जहां से गुजर रहे वह रास्ता वह व्यक्ति जिनसे आपको मिलना है। सब के प्रति कृतज्ञता रखें। इस अभ्यास से आनंद बढ़ सकता है, नींद बेहतर हो सकता है और शारीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर हो सकता है। याद रखें कृतज्ञता मात्र बड़ी चीजों के बारे में नहीं है यह छोटी खुशियां की सराहना करने के बारे में भी है, जिसे हम सांसारिक जीवन कहते हैं। जीतना हो सके देने की प्रयत्न करें क्योंकि शरीर अभी दिख रहा है उसके प्रति कृतज्ञता होना होगा सांस ले रहे हैं भोजन कर रहे हैं घूम रहे हैं सभी को धन्यवाद देना चाहिए। आज जो है उसे पहले देखना शुरू करें फिर सभी के प्रति ध्यान के माध्यम से जानने का प्रयास करें।
करुणा दया प्रेम में उतरना।
दूसरों के प्रति करुणा और दया आध्यात्मिक विकास मौलिक हैं। दूसरों के अनुभवों से समझना और उनके साथ सहानभूति रखने से, आप मानवता के साथ गहरा संबंध विकसित कर सकते हैं, दयालुता के कार्य बड़े-बड़े इशारे नहीं होता है एक साधारण सी मुस्कान या किसी ज़रूरतमंद की मदद करना भी बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। देने की हिम्मत करें जितना आप प्रेम दया में रहेंगे उतना ही आप आध्यात्मिक की ओर बढ़ेंगे। हमें प्रेमी होना होगा मात्र होना होगा जितना हम करुणा में रहेंगे उतना ही हम शांत होते जायेंगे। हमें प्रेम में उतना होगा हम प्रेम नहीं कर पाते क्योंकि हम वासना से पीड़ित हैं हम नीचे की तरफ़ दौड़ लगाते हैं चेतना के स्तर को नीचे ले जाते हैं मूलाधार तक स्वयं को सीमित कर लेते हैं। अभी हमें प्रेम का कुछ पता नहीं हम जब ही स्वार्थ से प्रेम करेंगे तब तक हम प्रेम को नहीं समझ सकते इसके लिए झुकना होता है अहंकार हटाना होता है। तभी हम पूर्ण प्रेमी होंगे अभी वासना लोभ है हम बस हासिल करना चाहते हैं उसे स्वतंत्र नहीं छोड़ना चाहते ये सब वासना का अंग है। हमें स्वार्थ से मुक्त होना होगा तभी हम करुणा दया में उतरेंगे। अभी कामना से मन भरा हुआ है हम करुणा भी नहीं कर पाते ऐसे में हमें ध्यान का अभ्यास करना होगा। स्वयं को विकसित करना होगा ताकि क्रोध लोभ घृणा के लिए कोई स्थान न बचे। और निरंतर प्रेम दया करुणा में हम उतर सकें।
सादगी अपनाएं।
आध्यात्मिक जीवन जीने का एक महत्वपूर्ण पहलू सादगी से जीना है। आज की भागदौड़ भरी दुनिया में, भौतिकवाद और अधिक की चाहत में फंसना आसान है। हालांकि, सच्चा संतोष अक्सर एक साधारण जीवन जीने से आता है जो वास्तव में मायने रखता है। अपने आस-पास की चीज़ों को व्यवस्थित करें, रिश्तों को प्राथमिकता दें यदि सांसारिक जीवन जीना है तो नहीं तो आपको संबंध को मजबूत करना ही होगा, आपको अंदर बाहर एक संबध स्थापित करना होगा, तभी बाहर और अंदर हम आनंद की वर्षा में स्नान कर सकते हैं। तनाव को होश से देखना होगा तभी हम पूर्ण जागरूक होंगे। अपने जीवन को सरल बनाकर, आप उन चीज़ों के के भीतर जागज बनाए जो वास्तव में आपकी आत्मा को पोषण देगा, और स्थाई आनंद लेने मे मदद करेगा।
ध्यान के जरिए चिंतन करना।
ध्यान विचारों और भावनाओं को संसाधित करने का एक प्रभावी तरीका है। यह आत्म अभिव्यक्ति और चिंतन के लिए एक आउटलेट प्रदान करेगा, जिससे आप अपनी आंतरिक दुनिया में अंतर्दृष्टि प्रपात कर सकते हैं। अपने अनुभवों, विचारों या किसी भी आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के बारे में जानने के लिए समय निकाल कर ध्यान का अभ्यास करें। अंत में, समान विचारधारा वाले व्यक्ति से जुड़ना आपकी आध्यात्मिक यात्रा को बहुत बढ़ा सकता है। ऐसे समूहों या समुदायों से जुड़ें जो आध्यात्मिक में अपनी रुचियों को साझा करते हैं या ऐसी चर्चा में शामिल हों जो आपको चुनौती देता हैं और प्रेरित करता हैं। दूसरों से अनुभव साझा करना और उनसे सीखना मूल्यवान समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है।
याद रखें कि आध्यात्मिक जीवन एक व्यक्तिगत यात्रा है, यह आपके साथ क्या प्रतिध्वनित होता है, यह पता लगाने और इसे दैनिक जीवन में शामिल करना होता है। तभी आप पूर्णता के तरफ़ बढ़ने में सफल होंगे, अभी भय भी लग रहा है भय को जानना होगा। जिस से भय होता है उसे सचेतन होकर भय में उतरना होगा, देखना होगा आंख खोलकर लेकिन इसका ये भी मतलब नहीं है की साहस होकर सबको मरते जाए, नहीं ये पूर्ण होने के लिए हमें साहसी होना होगा, एक होने के लिए शून्यता तक जाने के लिए, आज कल लोग धंधा बना दिए हैं ध्यान का नंबर वन बनने के लिए पैसा के लिए, सीखते भी है पैसे के लिए और सिखाते भी पैसे के लिए आत्म शांति गया भार में उनको एक उद्देश्य दे दिया जाता है पहले भी कुछ कर रहे थे आज भी कुछ करना है ये करना क्यों है ये हम नहीं समझ पाते चक्र को जान लेते हैं लेकिन स्वयं से भिन्न करके, एक नया दुनिया बसा लेते हैं। हमें ध्यान का अर्थ पता नहीं ध्यान का अर्थ है बस होना न की कुछ बनना मात्र होना हमें सत्य कोई नहीं बता पाता बस कुछ बनने के लिए प्रेरित करते हैं। हमें धंधा से अलग होना होगा तभी हम पूर्ण जागरूक होंगे और पूर्ण आनंद और परमानंद की उपलब्धि हासिल कर सकते हैं जिसका कभी अंत नहीं। इसके लिए हमें ध्यान से गुजरना होगा पहले जानना होगा तभी हम पूर्ण विकसित होंगे। हम पुस्तक से कुछ अर्थ अपने हिसाब से निकाल लेते हैं और उस हिसाब से जीने लगते हैं हमें धारणा कोई पकड़ना है मानना क्यों है जान जानने का साधन है फिर हम क्यों मानें जानना चाहिए तभी हम पूर्ण संतुष्ट और परमानंद को उपलब्ध होंगे।
धन्यवाद।
रविकेश झा🙏❤️।