“आधुनिक नारी”
मैं हूँ आधुनिक नारी, जीती हूँ खुद्दारी से,
हारती नही हूँ उन अभिमानी लोगों से,
मैं हूँ स्वाभिमानी नारी।
मैं वो हुं जो दिये की लौ बनती हूं,
घर आंगन को रोशन करती हूं,
मत खेलो मेरे जज्बातों से,
अंगार भी मैं बन जाती हूं।
जो भड़क उठी मैं अग्नि सी,
तो खाक तुम्हे कर सकती हूँ,
मैं आधुनिक नारी हूं,
मैं कुछ भी कर सकती हूँ।
यही इंदिरा यही सरोजनी,
यही टेरेसा नारी हैं,
बेदी जैसी कड़क,
सुष्मिता सी प्यारी है।
अंतरिक्ष में परचम लहराई,
वो कल्पना भी नारी थी,
सुर संगम का सार लता,
सुंदर ऎश्वर्या नारी थी।
जो तलवार उठाई थी,
वो भी झांसी की रानी थीं,
इसी धरा पर आज की नारी,
अब नही सकुचायेगी।
चाहे जितना हो जुल्म,
अब वो नही आसूं बहायेगी,
पतन होगा अब दरिंदों का,
उनके पर मैं काटूँगी।
पैरो पर खड़ी होकर स्वतंत्र जिंदगी काटूँगी,
आदर्शों, कर्त्तव्यों को सबला
बनकर बांटूंगी।
बहुत हो चुका जुल्म नारी पर,
अब इंसाफ की बारी है,
जाग नारी जाग, हम एक शक्ति नारी हैं।
हम मोम हैं तो, मुझमे ज्वाला भी धधकती हैं,
जितना नारी तपती है, उतना ही निखरती है।
आज की नारी हूँ, दुशासन से नही डरती हूँ,
अब देखो आधुनिक नारी को,
जो दुशाशन को मार भगाएगी।
वो दिन बीत गये जब मिला नही सम्मान,
मिला कदम अब पुरुषो से, बढ़ा नारी का सम्मान।
आज की नारी की आयी है अब बारी,
नारी ने विजयी होने की कर ली है तैयारी।
वही नारी अबला से सबला बनी,
वही बन गई आज आधुनिक नारी।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव✍️
प्रयागराज