आधुनिक जीवन दर्शन
आधुनिक जीवन दर्शन…
एक उम्र बीत जाती है… किसी और से पहले..
खुद को समझने में..
बिखरने के बाद खुद को समेटने में…
खुलकर जीने.. हंसने… रोने में…
हम कामयाब होना चाहते हैं..
आगे बढ़ना चाहते है..
मगर…….!!!
सब कुछ पा लेने के बाद भी..
हम चैन से नहीं जी पाते..
हम नहीं महसूस कर पाते…
मन के भीतर की वह चंचलता…
जो ना जाने हमें…
किस ओर ले जाना चाहती है…!
हम अपनी जड़ें मजबूत कर….
औरों की नींव हिलाना चाहते हैं…
कितनी ईर्ष्या! …
कितना लोभ! …
कितना अंधकार!
भरा पड़ा है हमारे अंदर…
कर लेंगे दुनिया मुट्ठी में…
हम ऐसा दंभ भरते है…
भोगा जो न यथार्थ कभी..
उसका भी ज्ञान रखते है…!
हम नहीं कर पाते..
बाहर से भीतर की ओर यात्रा..
हम है कुछ … और दिखाना..कुछ और चाहते है…!
कोई नहीं जानता… हमारा सच क्या है …
पर हमारी आत्मा…!
स्वीकारती है हमारी सच्चाई…
परखती है हमें….
उस निर्जन अंधकार से..
प्रकाश की ओर लाना चाहती है..
हमें थमना नहीं.. चलना सिखाती है…
पर हम है अपने मद में चूर ……
जिसे कुछ नहीं दिखता..
हम बस देखते है.. औरों को..
करते है तुलना… औरों से…
और फिर… शामिल हो जाते है उस अंधी दौड़ में…
जिसकी कोई मंजिल.. नहीं होती…
ग़र जिंदगी में.. किसी मुकाम पर पहुंच भी जाए..
तो संतुष्टि नहीं मिलती…
जीवन भर..
जाने किस.. मृगतृष्णा में जीते है।.
डॉ सोनी, मुजफ्फरपुर