आधुनिक अपराध
राजनीति के नशा में, मद्यपान की दशा में,
देश को लजा रहे हैं,नीच कर्म के लिए।
चेतनाएं खो चुके हैं, ज्ञानशून्य हो चुके हैं,
फ़र्ज़ क्या निभाएंगे ये,राष्ट्र धर्म के लिए ।
मान और अपमान का, जिन्हें नहीं है ध्यान,
बेचते ही जा रहे हैं, लाजशर्म के लिए।
लोकतंत्र में समाज, उग्र हो गया है आज,
दण्ड का विधान पुष्ट हो, अधर्म के लिए।