आधुनिकता
है गर्व हमे क्यो खुद पे इतना, क्यूँ इस जन्म पे अभिमान है।
हैं चिरंजीवी जग में हमीं या, हमारा सरपरस्त भगवान है।।
आधुनिक संसाधनों से, न हमे कभी परहेज था।
पर धर्म-शिक्षा से हमारा, जिन्दगी लवरेज था।।
थी न कभी अंग्रेजी की, चकमक भरी सी आदतें।
न बोझ था बस्तो का, भले कोसो दूर के हो रास्ते।।
आना जाना स्कूल का, हमको मजा दे जाती थी।
सूरज डूबे तक खेलते, हर खेल हमे लूभाति थी ।।
न टीवी था न डीवीडी, न चैटिंग न ही इंटरनेट था।
बस मै था मेरा दोस्त था, और वो भुखा पेट था।।
नलकूँप, कुँओं के नीर से, मदमस्त सरोकार था।
मिनरल वाटर, फास्टफूड का, न हमे दरकार था।।
यूँ ही शरारत सी भरी, मिट्टी का सारा खेल था।
न डॉक्टर, डिस्पेन्सरी, होता कभी भी मेल था।।
पर हाय सुबिधा ने ये क्या, रूप ऐसा ले लिया।
संम्पनता के साथ ही, हमे रोग कितना दे दिया।।
किस्से कहानी खो गए, नानी दादी के साथ ही।
सिर्फ कार्टून के आगे, आती न हमे कोई बात ही।।
हम हमारे मम्मी पापा, और तीजा भला ये कौन है।
“हम दो हमारे दो” क्या होता, हम तो तीनो मौन है।।
कल आज और कल आखिर, आधुनिकता क्या रंग लाएगा।
कल का सूरज आज का चिराग, चिद्रूप” कल बुझ जायेगा ।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ११/०२/२०१८ )