आधी रात शिखर तैं ढलगी हुया पहर का तड़का। बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
होनहार कवि ललित कुमार की फुटकड रचनाये @ संकलकर्ता-सन्दीप कौशिक , गांव – लोहारी जाटू, भिवानी
प्रश्न रचना
आधी रात शिखर तैं ढलगी हुया पहर का तड़का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।।टेक।।
जब लड़के का जन्म हुया ये तीन लोक थर्राए।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनू दर्शन करने आये।
सप्त ऋषि भी आसन ठा कै हवन करण नै आये।
साढ सती और मन मोहनी नै आके मंगल गाये।
जब नाम सूना था उस लड़के का हुया काल मुनि कै धड़का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
सात समन्दर उस लड़के नै दो टैम नहवाया करते।
अगन देवता बण्या रसोई, भोग लगाया करते।
इंद्र देवता लोटा ले कै चल्लू कराया करते।
पवन देवता पवन चला लड़के ने सूवाया करते।
जब लड़के नै भूख लगी वो पेड़ निगल गया बड़ का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
कामदेव पहरे पै रहता, चारों युग के साथी।
अस्ट वसु और ग्यारा रूद्र ये लड़के के नाती।
बावन कल्वे छप्पन भैरो गावें गीत परभाती।
उसके दरवाजे के ऊपर बेमाता साज बजाती।
गाना गावे साज बजावे करै प्रेम का छिड़का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
सब लड़कों मै उस लड़के का आदर मान निराला।
गंगा यमुना अडसठ तीरथ रटे प्रेम की माला।
चाँद सूरज और तारे तक भी दे रहे थे उज्याला।
वेद धरम की बात सुणावै लखमीचंद जांटी आळा।
उस नै कवी मै मानूं जो भेद खोल दे जड़ का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
उतरावली रचना
ऋषि मुनियो नै सत्य सहार वनखोड का मथन कीया,
बिना जिव की काया से फैर पृथु जी नै जन्म लिया।। टेक।।
जब पृथु का जन्म होया तिन लोक मै मांच्या शोर
ब्रहा बिष्णु शिवजी आऐ घन मै घटा तणी घनघोर
सप्त ऋषियों नै हवन कीया पृथु का बडीया जोर
उस साढ़ सति नै मंगल गाऐ नाचे किन्नर, गंधर्व, मोर
वो काल बली भी घबराया था जब बिष्णु नै सुदर्शन दिया।।
थे सात समुद्र शरण पृथु की आज्यां रोज नुवाणे नै
अग्नि देव नै करी रसोई दिया सदृढ धनुष चलाणे नै
इन्द्र देव नै मुकुट दे दिया देई बर्षा चलू कराणे नै
पवन देव नै वरदान दिया मै आज्याऊ रोज सुवाणे नै
जब पृथु नै भूख लगी थी उन बडका-ऐ दुध पिया।।
बिष्णु का अवतार था पृथु न्यु काम युग वणे साथी
बिष्णु के कारण वसु रूद्र कहलाऐ पृथु के नाती
52कलवे 56भैरूं सिद्ध गांव गात प्रभाती
वैकुंट सा लगै नजारा बेमाता साज बजाती
इतना बडीया साज बजाया लाग्या सब का जीया।।
सब दुनियां से पृथु जी का था दरबार न्यारा
गगां यमुना 68 तीर्थ कहं भार तारीये म्हारा
तारेगंण चंद्रमां चंमक संग चमकै सुर्य बारा
ललित बवानी आले नै यो भेद खोल दिया सारा
ये कवियां के घर दुर बताऐ मेरा न्यु लरजै सै हिया।।