आधा सावन बीत गया है, बालम मोहे मन भाने दो
कब से मुझसे कहते साजन
सावन को तुम आने दो
आधा सावन बीत गया है
बालम मोहे मन भाने दो।
रँगबिरँगी खिलती कलियाँ
कहती कर लूँ सोलह श्रृंगार
दिल में दर्द जगा जाता है
पपीहे की वो करुण पुकार
इस सावन में मुझको भी तुम
प्यार सदा बरसाने दो
आधा सावन बीत गया है
बालम मोहे मन भाने दो।
जब तुम मुझको छोड़ गए थे
वो भी ऐसा सावन था
तब से पल पल बरसी अँखियाँ
दिल में हर पल साजन था
आँखों की इस बारिश को तुम
जरा प्रिये थम जाने दो
आधा सावन बीत गया है
बालम मोहे मन भाने दो।
बिन तेरे होली दीवाली
सब सूनी सूनी लगती है
रातों में अब नींद न आये
दिनभर अँखियाँ जगती हैं
अब तो आ जाओ मेरे साजन
हाथों मेंहदी रंग जाने दो
आधा सावन बीत गया है
बालम मोहे मन भाने दो।
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’ (भोपाल)