आधा आधा
सपने बिना नयन है आधा
अपने बिना रिश्ते हैं आधा
मुस्कान बिना अधर है आधा
सामान बिना बाजार है आधा
सुर बिना संगीत है आधा
प्रीत बिना मनमीत है आधा
जीवन बिना जगत है आधा
प्रजा बिना राजा है आधा
रंग बिना गुलशन है आधा
नेह बिना जननी है आधी
सृंगार बिना रमनी है आधी
खुशबू बिना कलियां है आधी
सूरज बिना सुबह है आधी
चन्द्र बिना चकोर है आधा
मोती बिना शीपी है आधी
दिया बिना बाती है आधी
नारी बिना नर है आधा
इस जगत में साथी
सब है आधा – आधी
तुम भी आधे हम भी आधे
कौन है जो अकेले इसको साधे
भक्त के बिना तो भगवान भी दिखे हैं आधे
~ सिद्धार्थ