आदि-शक्ति
आदि-शक्ति ”
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मुझमें भी है
सृष्टि की आदि-शक्ति !
सत्य भी है !
शिव भी है !
और है
भोले की सुन्दर-भक्ति |
मैं भी रखता हूँ !
समाहित
अपने अन्तस में !
वो आदि-शक्ति
गीता के समत्व-योग की !
नहीं है मन में मेरे
कोई भी लालसा
भौतिकता के भोग की ||
रहता हूँ !
सदा-सर्वदा
अपनी ही “मौज” में !
बस ! ललक यही है
मेरे मन में सदा
रहूँ मैं नित्य ही
उस शून्य की खोज में ||
मैं रहता हूँ हमेशा
“दीप” की तरह !
जगमग-ज्योत सा !
यही कारण है कि
मैं सदा रहता हूँ !
स्नेहिल ओतप्रोत-सा ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”