आदि विद्रोही-स्पार्टकस
किसी मूर्दा सांचे में
तो ढ़लने से रहा मैं
अब अपने आप को
तो बदलने से रहा मैं…
(१)
दुनिया की नज़र में
अच्छा बनने के लिए
पीटी हुई लीक पर
तो चलने से रहा मैं…
(२)
दूसरों के फेंके हुए
रोटी के टूकड़ों पर
किसी कुत्ते की तरह
तो पलने से रहा मैं…
(३)
इतना देखने और
सुनने के बावजूद
रस्मों के नाम पर
तो छलने से रहा मैं…
(४)
मेरा हश्र जो होगा
अभी और यहीं होगा
बाद में अपने हाथ
तो मलने से रहा मैं…
(५)
मोमबत्ती की तरह
एक ठंडी आंच पर
रफ्ता-रफ्ता उम्र भर
तो गलने से रहा मैं…
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