आदर्शों की बातें
भूल हमसे हो अगर तो
समझौता करना चाहते हैं
अगर भूल दूसरों से हो तो
हम अपने लिए न्याय चाहते हैं
करना पड़े इंतज़ार किसी का
उसके लिए समय की कीमत नहीं है
करवाते है जब खुद इंतज़ार किसी को
कहते है थोड़ी देर तो हो ही जाती है
कैसा दोगलापन है ये हमारा
हो समय अच्छा तो ठहरना चाहिए
चल रहा हो मुसीबतों का दौर तो
वो समय जल्दी से बदलना चाहिए
है ये विरोधाभास हममें हमेशा से
लेकिन हम स्वीकार नहीं कर पाते
वो तो है ही ऐसा, घर देर से पहुंचता है
हम काम की वजह से जल्दी घर आ नहीं पाते
बात दूसरों की हो तो, आगे बढ़ना मुश्किल नहीं
बस लोग मेहनत नहीं करना चाहते हैं
जब खुद की बारी आए तो कहते हैं कि
पूरी कोशिश की, कौन सफल नहीं होना चाहते हैं
आंकते है दूसरों को सफलता से हमेशा
बात भी अपने नफे नुकसान के हिसाब से करते हैं
जब करता है कोई हमारे साथ भी ऐसा
हम यही पैमाना अपने ऊपर क्यों नहीं लगाते हैं
क्यों बदल जाते है हमारे विचार
जब बात अपने पर आती है
जो अपनाते हैं हम दूसरों के लिए
वो आदर्शों की बातें कहां चली जाती है।