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6 Nov 2024 · 4 min read

#आदरांजलि-

#आदरांजलि-
■ कीर्ति शेष : स्व. श्री सत्यभानु चौहान
★ सादगी, सदाचार व शुचिता की त्रिवेणी बना रहा जिनका सम्पूर्ण जीवन।
★ डॉ. सुब्बाराव के बाद गांधी विचार के दूसरे समर्पित बड़े संवाहक।
[प्रणय प्रभात]
खादी का ढीला-ढाला लेकिन व्यक्तित्व को और प्रभावी बनाता कुर्ता-पाजामा। सिर पर गांधी टोपी व पैरों में साधारण सी जूतियां। कंधे पर खादी का झोला। हल्की सर्दी में भूरी, कत्थई या काली नेहरू जॉकेट। तेज़ ठंड में “व्ही” आकार के गले वाली भूरी या आसमानी जरसी। ताम्रवर्णी (रक्ताभ) चेहरे पर अलग सी चमक और स्मित सी मुस्कान। अक़्सर नहीं, लगभग हमेशा। बेहद साधारण सी वेश-भूषा को असाधारण आकर्षण प्रदान करता एक अनूठा व्यक्तित्व, जो आज सदेह हमारे मध्य न हो कर भी हमारे मानस में है। एक आभास की तरह। अपने उस अनुपम कृतित्व के बूते, जो सहज विस्मृत नहीं किया जा सकता।
जी हां! आज मैं बात कर रहा हूँ स्व. श्री सत्यभानु सिंह जी चौहान की। इसलिए नहीं, कि वे अंचल की राजनीति के एक प्रबल प्रतिनिधि रहे। इसलिए भी नहीं कि हमारे क्षेत्र के विधायक रहे। अपितु इसलिए कि वे राजनीति की मायावी दुनिया में छल-दम्भ, राग-द्वेष, कपट व कुटिलता से विलग एक विलक्षण व्यक्तित्व रहे। जिन्होंने सुदीर्घ राजनैतिक जीवन में अपने जीवन-मूल्यों को सर्वोपरि रखा। अपनाए हुए आदर्शों को आत्मसात किया व सिद्धांतों के साथ समझौतों से परहेज़ किया। “काजल की कोठरी” सी सियासत में रहते हुए सादगी, शुचिता व सरलता के बलबूते आजीवन निष्कलंक रहे स्व. श्री चौहान अपने नाम को गुणों से चरितार्थ करने में पूर्णतः सफल रहे। जिन्होंने जीवन रूपी झीनी चदरिया को “कबीरी अंदाज़” में न केवल जतन से ओढ़ा, बल्कि “जस का तस” बनाए रखा।
एक समृद्ध, सशक्त व संयुक्त परिवार के अग्रगण्य सदस्य होते हुए भी आपने न कभी धन-बल, बाहु-बल पर भरोसा किया, न उन कुत्सित रीतियों-नीतियों पर, जिनकी बैसाखी के बिना राजनीति का चलना तो दूर, रेंगना भी शायद संभव नहीं। आप अपनी सरलता, सहजता, विनम्रता, मृदु व मितभाषिता के दम पर “अजातशत्रु” व “मार्गदर्शी” बने। वो भी सियासत के दंडक-वन में, अनगिनत “कालनेमियों” व “मारीचों” के मध्य रहते हुए। आपने “गांधी” या “गांधीवाद” को लोक-दिखावे के लिए मुखौटा या माध्यम नहीं बनाया। आपने उसे एक जीवन-शैली के रूप में पूरी निष्ठा, दृढ़ता, ईमानदारी व समर्पण के शीर्ष पर पहुंचते हुए निभाया। शायद इसीलिए मैं स्वाभाविक या व्यावहारिक तौर पर “गांधीवाद” से बहुत हद तक प्रेरित या प्रभावित न होने के बाद भी आपके कृतित्व की यशोगाथा लिख पा रहा हूँ। वो भी उस आस्था व आदर के साथ, जो नेताओं के प्रति सहज नहीं उमड़ती। कृपया इस साहसिक स्वीकारोक्ति को “बापू” के प्रति अनादर या अनास्था की दृष्टि से न लें। आज़ादी की लड़ाई में उनके अतुल्य योगदान के प्रति सम्मान के भाव मेरे हृदय में भी हैं। एक आम भारतीय नागरिक के रूप में।
आपकी वैचारिक प्रतिबद्धताओं से सरोकार न होने के बाद भी एक स्पष्टवादी, अध्ययनशील, तार्किकतापूर्ण व मुखर इंसान के रूप में मेरे प्रेरक रहे। आपकी फक्कड़-मिज़ाजी, यायावरी, स्वाध्याय की प्रवृत्ति व प्रखर वक्तव्य क्षमता के कारण आप मेरी भावनाओं के बेहद क़रीब रहे। साधन-सम्पन्नता के बावजूद यथासंभव वाहन से अधिक भरोसा अपने पांवों पर करना कुछ-कुछ आपको बरसों-बरस देख कर सीखा। सम-सामयिकता से अद्यतन रहना भी। इस सच को स्वीकारने में कोई संकोच नहीं मुझे। सौभाग्यशाली रहा कि तमाम मंचों पर आपका सान्निध्य सहज अर्जित कर पाया।
गोलंबर स्थित डॉ. ओमप्रकाश जी शर्मा के क्लीनिक पर न जाने कितनी बार आपका स्नेह, आशीष व प्रोत्साहन मिला। समाचार की सुर्खियों पर विमर्श के बीच। हर दिन मीलों की पदयात्रा आपके ज़मीन से जुड़ाव तथा आम जन से लगाव की द्योतक रही। आपकी मिलनसारिता की परिचायक भी। तभी समकालीनों के लिए “भैया जी” बने आप। परिजनों व प्रियजनों के लिए “चाचा जी” और मेरे लिए “बाबू जी।” आपका विधायक-काल तो मुझे याद नहीं, परन्तु आपके जीवन-काल के उतर्रार्द्ध का मैं एक सजग साक्षी रहा। सामाजिक व सार्वजनिक जीवन में आपकी सहज उपलब्धता व ऊर्जापूर्ण भागीदारी का भी। बिना किसी उस आग्रह-पूर्वाग्रह के, जो अब कथित “प्रोटोकॉल” के नाम पर हर छोटे-बड़े नेता का “हक़” बन चुका है। थोथे “व्हीआईपी कल्चर” के कलुषित दौर में।
एक पत्रकार के रूप में आपको अपने या अपने उत्तराधिकारी के लिए पद, क़द या प्रभाव का बेज़ा उपयोग करते न मैंने देखा, न सुना। लगभग साढ़े तीन दशक के पूर्णकालिक पत्रकारिता जीवन में ऐसा कोई एक प्रसंग मेरी स्मृति में नहीं, जब आपने अपने या किसी के महिमा-मंडन या खंडन का कोई संकेत देने का लेश-मात्र भी प्रयास किया हो। जो राजनीति में एक आम बात माना जाता है। आज आपकी दिव्यात्मा की अनंत-यात्रा का अंतिम दिवस है। आपके प्रति भावपूरित शब्द-सुमन समर्पित कर रहा हूँ। परमसत्ता, परमशक्ति आपकी पुण्यात्मा को परमपद व परमगति प्रदान करे। अनुजवत सौरभ जी व अतुल जी सहित सभी संतप्त परिजनों के लिए अपने आराध्य प्रभु श्री राम जी से असीम साहस, संयम व सम्बल की आत्मीय प्रार्थना। अकिंचन की ओर से विनम्र प्रणाम। शेष-अशेष।।
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-सम्पादक-
[न्यूज़&व्यूज़]
श्योपुर (मप्र)

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